बस्तर से आईआईएम तक: दंतेवाड़ा के युवाओं ने दिखाया बदलाव का नया रास्ता, आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया कदम

रायपुर, 16 जून 2025/
कभी संघर्ष, सीमित संसाधनों और अवसरों की कमी से जूझने वाला दंतेवाड़ा अब सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता की मिसाल बन रहा है। इसका प्रमाण है हाल ही में आईआईएम रायपुर में आयोजित उद्यमिता प्रमाण पत्र कार्यक्रम बैच-2 का सफल समापन। यह दो माह का आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम दंतेवाड़ा जिले के 50 चयनित युवाओं के लिए एक जीवन परिवर्तनकारी अनुभव साबित हुआ।

शिक्षा और प्रेरणा का संगम

23 अप्रैल से 13 जून 2025 तक चले इस कार्यक्रम के दौरान युवाओं को उद्योग, व्यवसाय, डिजिटल मार्केटिंग, ब्रांडिंग, प्रोजेक्ट प्लानिंग, और स्थानीय संसाधनों के व्यावसायिक उपयोग जैसे विविध पहलुओं की गहराई से शिक्षा दी गई। आईआईएम रायपुर ने न केवल उन्हें पाठ्यक्रम प्रदान किया, बल्कि नेतृत्व और नवाचार की क्षमता को उजागर करने के लिए व्यवहारिक प्रशिक्षण भी दिया।

युवाओं की सफलता की कहानियाँ

राकेश यादव, जिन्होंने जंगल से प्राप्त महुआ और इमली को व्यवसाय का आधार बनाया, कहते हैं – “अब मैं केवल सपने नहीं देखता, उन्हें साकार करने की दिशा में बढ़ चुका हूं।”
शिल्पा कुमारी (बचेली), अभिषेक गुप्ता (किरंदुल), तेजस्व कुमार (बीजापुर), और नीलम पांडे जैसे युवाओं ने बताया कि यह प्रशिक्षण उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट रहा है।

जिला प्रशासन की भूमिका

इस संपूर्ण प्रयास की रीढ़ बने दंतेवाड़ा के कलेक्टर श्री कुणाल दुदावत, जिनके सशक्त नेतृत्व और दूरदर्शिता ने इस परियोजना को मूर्त रूप दिया। जिला प्रशासन ने पहले युवाओं की पहचान की, फिर उन्हें रायपुर भेजकर रोजगार के नए द्वार खोल दिए।

मुख्यमंत्री का विशेष प्रोत्साहन

प्रशिक्षण के दौरान मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने प्रतिभागियों से भेंट की और उन्हें प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा, “बस्तर के युवाओं में असीम ऊर्जा है। यदि उन्हें सही दिशा और अवसर मिलें, तो वे पूरे प्रदेश को आगे ले जा सकते हैं।”

भविष्य की ओर कदम

अब दंतेवाड़ा जैसे क्षेत्र में महुआ आधारित उद्योग, इमली प्रसंस्करण इकाइयाँ, स्थानीय पर्यटन, और स्थानीय हस्तशिल्प उत्पादों पर आधारित स्टार्टअप जैसे नए व्यवसाय उभर रहे हैं। यह केवल एक प्रशिक्षण नहीं, बल्कि बस्तर के भविष्य की नींव है।

यह प्रयास यह दिखाता है कि अगर मंशा स्पष्ट हो, नीति सशक्त हो और मार्गदर्शन प्रभावशाली हो, तो सबसे चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ भी आत्मनिर्भरता और विकास की ओर मोड़ी जा सकती हैं।

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