नई दिल्ली/इस्लामाबाद — पाकिस्तान का नूर खान एयरबेस एक बार फिर सुर्खियों में है, और इस बार इसका जुड़ाव सिर्फ पाकिस्तान की सैन्य रणनीति से नहीं, बल्कि अमेरिका, इज़रायल, और भारत-पाकिस्तान के बीच चल रही तनावपूर्ण कूटनीति से भी हो रहा है। एक वायरल वीडियो में एक पाकिस्तानी पत्रकार का दावा है कि किसी समय अमेरिका ने इस एयरबेस पर कब्ज़ा कर रखा था और पाकिस्तानी सैनिकों को भी इसमें पूरी पहुंच नहीं दी जाती थी। इस वीडियो के प्रसार के साथ ही एक सवाल उठ रहा है—क्या नूर खान एयरबेस में अमेरिकी गतिविधियां ही वजह थीं कि अमेरिका ने भारत-पाक युद्ध के दौरान तुरंत सीजफायर की मांग की?
नूर खान एयरबेस: रणनीतिक गूढ़ता का केंद्र
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के रावलपिंडी के पास स्थित नूर खान एयरबेस को पहले चकलाला एयरबेस कहा जाता था। यह एयरबेस पाकिस्तान वायुसेना (PAF) का एक अत्यंत महत्वपूर्ण केंद्र है और फेडरल एयर कमांड के तहत एयर मोबिलिटी कमांड का मुख्यालय भी है। यहां से VIP मूवमेंट, सैन्य रसद, और खुफिया मिशन संचालित होते हैं।
इस एयरबेस में PAF के सबसे अहम विमानों – C-130 हरक्यूलिस, ISR प्लेन्स (Intelligence, Surveillance, Reconnaissance) आदि की तैनाती है। यही वह जगह है जहां से पाकिस्तान की गुप्त सैन्य रणनीतियां संचालित होती हैं।
वायरल दावा: अमेरिका ने किया था एयरबेस पर कब्ज़ा?
वायरल वीडियो में एक पत्रकार दावा करता है कि एक समय पर अमेरिका ने नूर खान एयरबेस का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया था। अमेरिकी कार्गो विमान यहां नियमित रूप से उतरते थे और पाकिस्तानी सैनिकों को यह देखने या पूछताछ करने की अनुमति नहीं होती थी। जब एक पाकिस्तानी सैनिक ने सवाल उठाया, तो अमेरिकी सैनिकों ने उस पर हथियार तान दिए। इसका अर्थ था कि एयरबेस के कुछ हिस्से पर पाकिस्तान की सैन्य संप्रभुता तक सीमित थी।
हालांकि इस दावे की पुष्टि करने वाले आधिकारिक दस्तावेज या बयान अभी सामने नहीं आए हैं, लेकिन इतिहास में देखा गया है कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच सामरिक सहयोग के दौरान, खासकर अफगान युद्ध और वॉर ऑन टेरर के समय, अमेरिका ने पाकिस्तान की कई सैन्य सुविधाओं का उपयोग किया था।
भारत-पाक युद्ध और अमेरिका की सीजफायर की बेचैनी
2024-25 के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया। ऑपरेशन सिंधुर के तहत भारतीय वायुसेना द्वारा सीमापार सर्जिकल स्ट्राइक्स की खबरें सामने आईं, और सूत्रों के अनुसार नूर खान एयरबेस भी इस हमले से प्रभावित हुआ।
अब सवाल उठता है कि भारत द्वारा इस अत्यंत संवेदनशील एयरबेस को निशाना बनाए जाने के बाद अमेरिका क्यों तुरंत युद्ध विराम (सीजफायर) के लिए सक्रिय हो गया?
संभावित कारण:
- गोपनीय अमेरिकी गतिविधियों का पर्दाफाश
यदि नूर खान एयरबेस पर अमेरिकी सैन्य, खुफिया या लॉजिस्टिक गतिविधियां वास्तव में संचालित हो रही थीं, तो भारतीय हमले से न केवल पाकिस्तान की संप्रभुता बल्कि अमेरिकी गुप्त अभियानों पर भी खतरा मंडराने लगा था। अमेरिका नहीं चाहता था कि भारत की कोई मिसाइल या ड्रोन किसी ऐसे क्षेत्र को हिट करे, जहां अमेरिकी संवेदनशील उपकरण या एजेंट हों। - इज़रायल और अमेरिका के संयुक्त संचालन की आशंका
अतीत में इज़रायल और अमेरिका के बीच खुफिया साझेदारी को लेकर भी बातें सामने आती रही हैं। ऐसी अटकलें भी हैं कि नूर खान एयरबेस का उपयोग सिग्नल इंटेलिजेंस, सैटेलाइट लिंक्स, या ड्रोन नेटवर्किंग के लिए हो सकता है—जो इज़रायल-अमेरिका की साझा परियोजनाओं का हिस्सा हो सकते हैं। - अमेरिका की वैश्विक प्रतिष्ठा दांव पर
यदि भारत के हमले से अमेरिकी तकनीकी या सैन्य ठिकानों की क्षति होती, तो इससे अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय छवि और पाकिस्तान के साथ उसके सहयोग पर सवाल उठते। इसी कारण अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाकर जल्द से जल्द युद्धविराम की पैरवी की। - चीन और रूस की एंट्री को रोकना
भारत-पाक युद्ध यदि बढ़ता, तो इसमें चीन और रूस जैसी महाशक्तियों की भूमिका भी बढ़ जाती। अमेरिका नहीं चाहता था कि दक्षिण एशिया एक बार फिर वैश्विक महाशक्ति संघर्ष का मैदान बने।
सीजफायर के पीछे की सच्चाई: सिर्फ शांति नहीं, रणनीति थी
जब अमेरिका ने भारत पर सीजफायर के लिए दबाव डाला, तो यह कदम न तो सिर्फ मानवता की रक्षा के लिए था, न ही किसी एक देश की हितैषी नीति। इसके पीछे साफ-साफ रणनीतिक मजबूरियां थीं—खासकर नूर खान एयरबेस जैसी सैन्य-संवेदनशील जगहों पर अमेरिकी संलिप्तता को छुपाना, और एक भू-राजनीतिक संकट को विस्फोट से पहले ही शांत करना।
निष्कर्ष: नूर खान एयरबेस सिर्फ एक एयरबेस नहीं
नूर खान एयरबेस अब पाकिस्तान या उसके इतिहास का केवल एक हिस्सा नहीं रहा। यह एक ऐसा केंद्र बन चुका है जहां अमेरिका, पाकिस्तान, भारत, इज़रायल जैसे कई देशों के हित एक-दूसरे से टकराते हैं। भारत द्वारा किए गए सैन्य अभियानों ने इन परतों को खोलना शुरू कर दिया है।
और जब-जब भारत पाकिस्तान के सैन्य केंद्रों को निशाना बनाएगा, अमेरिका का डर, उसकी छिपी हुई उपस्थिति और रणनीतिक हित उसे फिर से युद्ध विराम की मांग करने पर मजबूर करेंगे।
