रायपुर, 26 मई 2025।
छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। साल 2013 के झीरम घाटी नक्सली हमले को लेकर कांग्रेस और बीजेपी के बीच तीखी बयानबाज़ी शुरू हो गई है। पूर्व उपमुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव के हालिया बयान ने इस दर्दनाक हमले को एक बार फिर सियासी बहस के केंद्र में ला खड़ा किया है।
टी.एस. सिंहदेव ने कहा है कि “NIA ने झीरम घाटी कांड की जांच की, लेकिन मुझसे कभी पूछताछ तक नहीं की गई, जबकि मैं परिवर्तन यात्रा का प्रभारी था। यह कोई आम नक्सली हमला नहीं था, बल्कि कांग्रेस के बड़े नेताओं को निशाना बनाकर की गई गहरी साजिश थी।”
सिंहदेव के इस बयान ने न केवल जांच की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि कांग्रेस पार्टी के भीतर की गुटबाज़ी की ओर भी संकेत किया है। उन्होंने यहां तक कहा कि “2013 का चुनाव कांग्रेस न जीत पाए, यह चाहने वालों की साजिश थी।” इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ा दी है।
बीजेपी ने भी तुरंत पलटवार करते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा। प्रदेश प्रवक्ता संजय पांडे ने कहा, “झीरम का असली मास्टरमाइंड कांग्रेस के ही गुरु और चेला हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि “2013 में किसकी सरकार थी और किसे गाड़ी की चाबी सौंपी गई थी, यह सबको याद है।”
झीरम घाटी हमला, जिसमें कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्या चरण शुक्ल सहित 29 लोगों की जान गई थी, छत्तीसगढ़ के राजनीतिक इतिहास का सबसे दर्दनाक और रहस्यमय अध्याय माना जाता है।
क्या NIA की जांच अधूरी रही?
टी.एस. सिंहदेव का यह बयान कि उनसे कभी पूछताछ नहीं हुई, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की जांच की गहराई और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। विपक्ष इसे अब एक बड़ा मुद्दा बनाकर सामने ला रहा है, और जनता के बीच भी इस पर चर्चा तेज हो गई है।
कांग्रेस में अंदरूनी हलचल?
सिंहदेव के बयान से साफ संकेत मिलते हैं कि कांग्रेस पार्टी के भीतर कुछ नेताओं को शक की निगाह से देखा जा रहा है। इससे पार्टी की एकता और नेतृत्व पर नए सवाल खड़े हो सकते हैं, खासकर आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर।
बीजेपी की ‘गुरु-चेला’ रणनीति
बीजेपी ने कांग्रेस के भीतर ही षड्यंत्र के आरोप लगाकर एक नया नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश की है। ‘गुरु और चेला’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते हुए बीजेपी ने स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले चुनावों में वह झीरम घाटी कांड को एक बड़ा मुद्दा बनाएगी।
जनता और पीड़ित परिवारों पर असर
राजनीतिक बयानबाज़ी के इस दौर में सबसे ज्यादा प्रभावित वे परिवार हैं, जिन्होंने झीरम घाटी हमले में अपनों को खोया। ऐसे बयानों से उनके जख्म फिर से हरे हो गए हैं। साथ ही जनता के बीच यह सवाल उठने लगा है कि क्या इस हमले की सच्चाई कभी सामने आएगी या यह सिर्फ सियासी हथियार बनकर रह जाएगा?
