छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 2014 में टाहकवारा में हुए नक्सली हमले में दोषी करार दिए गए नक्सलियों की अपील को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने इस हमले को लोकतांत्रिक संस्थाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया।
क्या था 2014 का टाहकवारा नक्सली हमला?
11 मार्च 2014 को छत्तीसगढ़ के टाहकवारा (राष्ट्रीय राजमार्ग 30) पर नक्सलियों ने सीआरपीएफ और पुलिस कर्मियों की रोड ओपनिंग पार्टी (ROP) पर हमला किया था। इस हमले में 15 सुरक्षाकर्मी और 4 नागरिक शहीद हो गए थे। नक्सलियों ने लगभग एक घंटे तक फायरिंग और आईईडी ब्लास्ट कर पुलिसकर्मियों के हथियार लूट लिए थे।
कोर्ट का फैसला और साजिश का खुलासा
इस मामले में विशेष न्यायालय जगदलपुर ने कवासी जोगा, दयाराम बघेल, मनीराम कोर्राम, महादेव नाग सहित अन्य आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। दोषियों ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी, जिसे अब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच (डीबी) ने खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि नक्सली हमले सिर्फ आपराधिक कृत्य नहीं बल्कि लोकतंत्र और राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ एक सुनियोजित विद्रोह का हिस्सा हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि साजिश हमेशा गुप्त रूप से रची जाती है, इसलिए इसे साबित करने के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी पर्याप्त होते हैं।
एनआईए की जांच और चार्जशीट
इस मामले की जांच 21 मार्च 2014 को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपी गई थी। एनआईए ने IPC की धारा 302, 120B, शस्त्र अधिनियम और UAPA की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप पत्र दाखिल किया था।
न्यायपालिका का सख्त रुख
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ऐसे नक्सली हमले केवल कानून और सुरक्षा बलों के खिलाफ नहीं होते, बल्कि यह लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने की साजिश का हिस्सा हैं। कोर्ट के इस फैसले से आतंक और हिंसा फैलाने वाले नक्सलियों को सख्त संदेश मिला है।
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