नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु पर दशकों से जारी विवाद: क्या हुआ था 18 अगस्त 1945 को?

18 अगस्त 1945 को, द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्वी मोर्चे पर समाप्त होने के तीन दिन बाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु ताइपे (तब जापान के अधीन) में एक विमान दुर्घटना के बाद हुई थी। उनके अवशेषों का अंतिम संस्कार वहीं किया गया और फिर टोक्यो ले जाया गया। भारतीय प्रवासियों के एक समूह ने, जो उस समय जापान में रहते थे, उनके अवशेषों को अस्थायी रूप से रेंकोजी मंदिर में सुरक्षित रखने का प्रबंध किया। लेकिन आज, लगभग 80 साल बाद, नेताजी के अवशेष अब भी रेंकोजी मंदिर में संरक्षित हैं।

नेताजी की मौत के समय दुनिया भर में अशांति का माहौल था। उस समय की संचार तकनीक वर्तमान समय की तुलना में बेहद धीमी और सीमित थी। उनकी मृत्यु के बाद सवाल उठे: क्या नेताजी सच में मारे गए? या उन्होंने एक बार फिर, जैसे उन्होंने 1941 में भारत से भेष बदलकर और 1943 में जर्मनी से पनडुब्बी के माध्यम से किया था, एक साहसिक भागने का रास्ता खोज लिया?

नेताजी की मौत के तुरंत बाद की गई जांच को कई दशकों तक गुप्त रखा गया। इस दौरान उनकी मृत्यु को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई गईं। हालांकि, समय के साथ पहले की गई जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया और भारत सरकार ने तीन अन्य जांच आयोग (1956, 1979 और 1999 में) गठित किए। इनमें से 10 रिपोर्टों में इस बात की पुष्टि हुई कि नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 की रात ताइपे में विमान दुर्घटना में हुई थी।

हालांकि, 1999 में गठित जस्टिस मुखर्जी कमीशन ने इस मामले में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से इनकार कर दिया। लेकिन इस रिपोर्ट में कई गलतियां और असंगतियां पाई गईं। जब नेताजी के परिवार के सदस्यों ने व्यक्तिगत रूप से जस्टिस मुखर्जी से इस बारे में सवाल किया, तो उन्होंने गलतियों को स्वीकार किया लेकिन इस पर विस्तार से बात करने से इनकार कर दिया।

नेताजी की मौत को लेकर कई प्रकार की अटकलें और रहस्यमयी कहानियां सामने आईं। हालांकि ये कहानियां भावनात्मक लगाव के कारण प्रेरित हो सकती हैं, कई बार इन रहस्यों का व्यवसायिक लाभ भी उठाया गया। लेकिन अब समय आ गया है कि इन अटकलों को किनारे रखते हुए इस ऐतिहासिक तथ्य को स्वीकार किया जाए कि नेताजी का निधन 18 अगस्त 1945 को हुआ था।

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