राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव, जनजातीय संस्कृति के महाकुंभ में 1200 कलाकार देंगे प्रस्तुति

राजधानी रायपुर के साईंस कॉलेज मैदान में 27 दिसम्बर से शुरू हो रहे तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव देश के विभिन्न राज्यों के साथ अन्य देशों के लगभग 80 जनजातीय नृत्य दलों के 1200 कलाकार शामिल हो रहे हैं। महोत्सव में अन्य देशों के कलाकार भी शामिल होंगे। 27 दिसंबर को कार्यक्रम की शुरुआत के बाद विदेशी नृत्य दलों में से थाईलैण्ड, श्रीलंका और बेलारूस के दल अपनी प्रस्तुतियां देंगे तथा भोजन अवकाश के बाद युगांडा, मालदीव और बांग्लादेश के कलाकारों की रंगारंग प्रस्तुति होगी। महोत्सव में 27 से 29 दिसम्बर तक सुबह 9.00 बजे से रात 9.00 बजे तक सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। आयोजन स्थल में एक हाट-बाजार भी रहेगा। इसके अलावा फूड जोन में छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भी लोग लुफ्त उठा सकेंगे।

रायपुर (छत्तीसगढ़)। राज्य की राजधानी रायपुर में 27 दिसम्बर से आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में लद्दाख अण्डमान निकोबार और पश्चिमी हिमालय के जम्मू-कश्मीर, केरल राज्यों के आदिवासी नृत्य शामिल होंगे। अब तक देश के 25 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के आदिवासी नृत्यों कलाकारों से शामिल होने की सहमति मिल चुकी है। राज्य में पहली बार हो रहे जनजातीय संस्कृति के महाकुंभ में हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले में निवास करने वाली गद्दी जनजाति, किन्नौर जिले के किन्नौरा और पंगीधारी के पंगवाल आदिवासियों की मनमोहक प्रस्तुतियां दी जाएगी।
आकृषक होगा जनजातियों का किन्नौरा नृत्य
पश्चिमी हिमालय स्थित राज्य हिमाचल प्रदेश के किन्नौर क्षेत्र में निवास करने वाली जनजाति किन्नौरा या किन्नर के नाम से जानी जाती है। पुरूष ऊन से बने पायजामा, लंबा कोट जिसे चुबा कहा जाता है तथा जैकेट पहनते हैं। महिलाओं के वस्त्र में ऊन की बनी साड़ी जैसा वस्त्र, पूरी बांह की चोली और शॉल आदि शामिल रहते हैं। महिलाओं के आभूषण में तुनोक, ताब, मुलु, चंद्रहार, शोकपोटो, लौंग, बालू, मुंदी, खांडू, धागुलु, सुन्ननगो, पिचों, पट्टू, डिगरा, दोहरु आदि प्रमुख है। कयंग सर्वाधिक लोकप्रिय किन्नौरा नृत्य है। इस नृत्य में नर्तक एक दूसरे का हाथ पकड़कर वृत्त बनाते हैं और नृत्य करते हैं।
भगवान शंकर की पूजा से प्रारंभ होता है डंडा रास नृत्य
पश्चिमी हिमालय का हिमाचल प्रदेश अनेक जनजातीय समुदायों का निवास क्षेत्र है। हिमाचल प्रदेश का गद्दी आदिवासी समाज राज्य के चंबा जिले में निवास करता है। चंबा से सिरमोर तहसील में गद्दी जनजाति की प्रदर्शनकारी कलाओं में डंडा रास का प्रमुख स्थान है जिसे त्यौहारों पर तथा मेले में किया जाता है। नृतक को वस्त्रों में चोली नामक परिधान पहाना जाता है जिसमें कमर पर डोरा बंधा रहता है। गद्दी समाज के लोग अपने इस परिधान को भगवान शंकर का वस्त्र कहते हैं। डंडा रास की शरूआत भगवान शंकर की पूजा से होती है जिसके पश्चात नागदेवता की स्तुति गायी जाती है।
चंबा जिले का घुरई नृत्य होगा मोहक
पंगवाला हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की पांगी तहसील में निवास करने वाली एक जनजाति है। पंगवाला जनजाति का मुख्य व्यवसाय कृषि, बागवानी, भेड़-बकरी पालन इत्यादि है। पांगी क्षेत्र साल में 6 महीने नवंबर से अप्रैल तक बर्फ से ढका रहता है। इसी बर्फ से ढके मौसम में पंगवाला लोगों द्वारा अपने धार्मिक और पारिवारिक उत्सवों पर घुरई नामक नृत्य किया जाता है। यह नृत्य जुकारू उत्सव पर लगातार 10 दिनों तक चलता है। नृत्य मुख्यत: खुले जगह पर या घरों की छतों पर किया जाता है। घुरई में पहने जाने वाले परिधान में पंगवाली सूट के साथ पंगवाली चादर, लाल गाछी तथा सिर पर जोजी और पैरों में पहने जाने वाले विशेष प्रकार के घास से बने जूते सम्मिलित हैं।

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