बस्तर के विकास की नई रफ्तार: मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से की बोधघाट बांध और इंद्रावती-महानदी लिंक परियोजना पर चर्चा

रायपुर, 07 जून 2025/
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात कर छत्तीसगढ़ की दो अत्यंत महत्वपूर्ण परियोजनाओं — बहुउद्देशीय बोधघाट बांध परियोजना और इंद्रावती-महानदी इंटरलिंकिंग परियोजना — को राष्ट्रीय परियोजना के रूप में घोषित करने का अनुरोध किया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि बस्तर संभाग वर्षों से नक्सल प्रभावित रहा है, जिसके कारण यहां सिंचाई साधनों का समुचित विकास नहीं हो सका। अब समय आ गया है कि इस क्षेत्र में बहुउद्देशीय बोधघाट बांध और इंद्रावती-महानदी लिंक जैसी बड़ी परियोजनाओं के माध्यम से सिंचाई, बिजली, मत्स्य पालन और पेयजल की व्यवस्था को मजबूत किया जाए।

✅ क्या है बहुउद्देशीय बोधघाट बांध परियोजना?

यह परियोजना इंद्रावती नदी पर प्रस्तावित है, जो गोदावरी की एक बड़ी सहायक नदी है। दंतेवाड़ा जिले के गीदम विकासखंड के ग्राम बारसूर से लगभग 8 किमी और जगदलपुर से 100 किमी की दूरी पर प्रस्तावित यह बांध बस्तर के चहुंमुखी विकास की कुंजी मानी जा रही है।

मुख्यमंत्री ने बताया कि यह परियोजना:

  • 125 मेगावाट बिजली उत्पादन में सहायक होगी
  • 3.78 लाख हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराएगी
  • 49 मि.घ.मी. पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करेगी
  • 4824 टन वार्षिक मत्स्य उत्पादन और अन्य रोजगार के अवसर उपलब्ध कराएगी

✅ इंद्रावती-महानदी इंटरलिंकिंग परियोजना का लाभ

यह परियोजना कांकेर जिले की लगभग 50,000 हेक्टेयर भूमि सहित कुल 3 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में सिंचाई सुविधा देगी। इससे न केवल कृषि विकास को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि आत्मनिर्भर बस्तर का सपना भी साकार हो सकेगा।

✅ अनुमानित लागत और भूगोल

  • कुल अनुमानित लागत: ₹49,000 करोड़
    • इंद्रावती-महानदी लिंक परियोजना: ₹20,000 करोड़
    • बोधघाट बांध परियोजना: ₹29,000 करोड़
  • उपयोगी जल भराव क्षमता: 2009 मि.घ.मी.
  • कुल जल भराव क्षमता: 2727 मि.घ.मी.
  • जलाशय क्षेत्रफल: 10,440 हेक्टेयर (पूर्ण जल स्तर पर)

✅ किन जिलों को मिलेगा सीधा लाभ?

  • बोधघाट परियोजना: दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा के 269 गांव
  • इंद्रावती-महानदी परियोजना: कांकेर जिले के अनेक गांव

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि दोनों परियोजनाएं केवल बुनियादी सुविधाओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह विकसित, आत्मनिर्भर और सुरक्षित बस्तर की दिशा में ऐतिहासिक और निर्णायक कदम हैं।

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