सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: दो महिला न्यायाधीशों की सेवा बहाल, टर्मिनेशन को बताया अवैध

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा दो महिला सिविल जजों को सेवा से निष्कासित किए जाने के फैसले को ग़लत, दंडात्मक और अवैध करार देते हुए दोबारा बहाल करने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन कोतिस्वर सिंह की पीठ ने कहा कि बर्खास्तगी आदेश बिना उचित सुनवाई के जारी किया गया, जो पूरी तरह से मनमाना और अनुचित है।

न्यायाधीशों को दिया जाएगा पूर्ण सेवा लाभ

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि दोनों महिला जजों – अदिति कुमार शर्मा और सरिता चौधरी – को 15 दिनों के भीतर सेवा में बहाल किया जाए। साथ ही, उनकी प्रोबेशन तिथि उनके कनिष्ठ साथियों के समान मानी जाएगी और सभी वित्तीय लाभों की गणना पेंशन के लिए विचारार्थ की जाएगी

महिलाओं के लिए न्यायपालिका में अनुकूल माहौल जरूरी

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर सुरक्षित और अनुकूल वातावरण की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कहा,
“केवल महिला न्यायिक अधिकारियों की संख्या बढ़ाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनके लिए न्यायपालिका में टिके रहने और आगे बढ़ने का उचित माहौल बनाना भी ज़रूरी है।”

उन्होंने यह भी कहा कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए और गर्भपात उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को खारिज किया

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा सीलबंद लिफाफे में सौंपी गई रिपोर्ट को अस्वीकार करते हुए कहा कि,
“हमें इसमें कोई ठोस आधार नहीं मिला जिससे बर्खास्तगी को उचित ठहराया जा सके। यह निर्णय पूरी तरह से अनुचित था और दंडात्मक प्रकृति का था।”

मामले की पृष्ठभूमि

  • 2018 और 2017 में मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा से जुड़ी छह महिला जजों को 2023 में प्रशासनिक समिति और हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ द्वारा प्रोबेशन अवधि के दौरान खराब प्रदर्शन का हवाला देते हुए बर्खास्त कर दिया गया
  • सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2023 में चार जजों को बहाल कर दिया, लेकिन दो जजों के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने फैसला बदलने से इनकार कर दिया
  • अब सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दोनों जजों को सेवा में वापस लिया जाए

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