जगदलपुर में नगरीय निकाय चुनाव से पहले पानी संकट बड़ा मुद्दा, 9 साल बाद भी अधूरी अमृत मिशन योजना

जगदलपुर, 3 फरवरी: नगरीय निकाय चुनाव की वोटिंग के लिए अब सिर्फ 9 दिन बचे हैं। ऐसे में कांग्रेस, बीजेपी और निर्दलीय प्रत्याशी जमकर प्रचार में जुटे हैं। लेकिन इस चुनाव में जनता से जुड़े मुद्दे, खासकर पेयजल संकट, सुर्खियों में हैं।

9 सालों से जगदलपुर में नहीं मिला साफ पानी
मतदाताओं का कहना है कि 2016 में केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी अमृत मिशन योजना के तहत जगदलपुर को 24 घंटे शुद्ध पेयजल देने का वादा किया गया था। लेकिन 9 साल बीतने के बाद भी शहरवासी साफ पानी के लिए तरस रहे हैं।

  • 2019 तक काम पूरा होना था, लेकिन अभी तक केवल 80% जलापूर्ति का कार्य ही हो सका है।
  • मीटर लगने की प्रक्रिया अधूरी है, और कई घरों में अब तक कनेक्शन तक नहीं मिला।
  • 104 करोड़ की परियोजना की लागत अब 150 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है।
  • राज्य के अन्य शहरों में जलापूर्ति शुरू हो गई है, लेकिन जगदलपुर अभी भी इंतजार कर रहा है।

भ्रष्टाचार और देरी के आरोप

विभिन्न दलों के प्रत्याशी इस योजना में भ्रष्टाचार और लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं।

  • पूर्व महापौर सफीरा साहू ने कहा कि 90% काम पूरा हो चुका है और ठेकेदारों को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है।
  • आम आदमी पार्टी के समीर खान और निर्दलीय प्रत्याशी रोहित सिंह आर्या ने अमृत मिशन योजना में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है।
  • रोहित सिंह आर्या ने कहा कि नगर निगम में 9 सालों से कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन जनता को सिर्फ आश्वासन मिला।
  • ठेकेदारों को अनुचित लाभ देने के आरोप भी लगे हैं।

प्रशासन की सफाई और आगे की योजना

नगर निगम के एसडीओ और अमृत मिशन योजना के प्रभारी अमर सिंह ने कहा कि ठेकेदारों की अदला-बदली के कारण काम प्रभावित हुआ है

  • नए ठेकेदार नियुक्त किए गए हैं।
  • जल्द ही घर-घर मीटर लगाने की प्रक्रिया शुरू होगी।
  • राज्य शासन से अतिरिक्त राशि की मांग की गई है और मिलने के बाद आगामी महीनों में योजना पूरी हो सकती है।

जनता की उम्मीदें और चुनावी दावे

नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही अमृत मिशन योजना को पूरा करने का दावा कर रहे हैं। लेकिन जनता का कहना है कि हर चुनाव में यह मुद्दा उठता है, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकला। गर्मियों में पानी की समस्या और बढ़ जाती है, जिससे आम लोगों को काफी परेशानी होती है।

अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या इस चुनाव में जल संकट मुद्दा बनकर सत्ता परिवर्तन करेगा, या फिर मतदाता पुराने वादों पर भरोसा जताएंगे।