बीजापुर में एक बार फिर आईईडी हमले ने सुरक्षा बलों को निशाना बनाया। इस हमले में कई जवान शहीद हो गए। यह घटना सुरक्षा प्रक्रियाओं और मानक संचालन प्रक्रियाओं (SOPs) पर सवाल खड़े कर रही है।
60-70 किलो वजनी आईईडी कैसे नजरअंदाज हो गया? अगर रोड ओपनिंग पार्टी ने मार्ग को पहले ही सुरक्षित कर दिया था, तो झाड़ियों में छिपा खतरा क्यों नहीं दिखाई दिया? ये सवाल बीजापुर हमले के बाद उसी तरह उठ रहे हैं, जैसे अप्रैल 2023 में दंतेवाड़ा में हुए आईईडी विस्फोट और अप्रैल 2011 के टेकेलगुड़ा नरसंहार के बाद उठे थे, जिसमें 25 सुरक्षा कर्मी मारे गए थे।
सोमवार को बीजापुर में शहीद हुए जवान दो दिन की कठिन ऑपरेशन के बाद पांच माओवादियों को मारने में सफल हुए थे। पुलिस का कहना है कि काफिले के आने से पहले रोड ओपनिंग पार्टी ने रास्ते की जांच की थी, फिर भी आईईडी कैसे नजरअंदाज हुआ, यह एक बड़ा सवाल बना हुआ है।