अपील, कलेक्टर ने कहा जिले में पैरादान महती अभियान की तरह चलाया जाए

दुर्ग (छत्तीसगढ़)। पिछले वर्ष हजारों किसानों ने गोधन के संवर्धन के लिए पैरादान में भागीदारी की थी जिनके सहयोग से गौठानों में गौमाता के लिए चारा उपलब्ध कराया जा सका था। कलेक्टर डाॅ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने इस वर्ष भी पैरादान करने की अपील दुर्ग जिले के निवासियों से की है। अपनी अपील में कलेक्टर ने कहा है कि दुर्ग जिले के निवासियों ने हमेशा से जनकल्याण के कार्यों में अपनी भागीदारी निभाई है। पिछले साल व्यापक रूप से लोग पैरादान की मुहिम में जुटे थे। सेवाभावी लोगों ने पिछले साल मिसाल कायम की थी, उन्होंने न केवल पैरादान किया अपितु इसे गौठानों तक पहुंचाया भी। हर ग्रामीण ने बढ़चढ़कर इस महती अभियान में हिस्सेदारी निभाई थी। इस बार भी हमेशा की तरह इस पुनीत कार्य में ग्रामीणजन अपनी हिस्सेदारी करेंगे, ऐसी आशा है। कलेक्टर ने कहा कि हमारे ग्रामीण गौठानों के साथ ही शहरी गौठानों में भी गायों के लिए चारों की जरूरत होगी। शासन के महती प्रयासों से इस बार गौठानों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है और बड़ी संख्या में मवेशी गौठानों में पहुंच रहे हैं। गौठानों का संचालन कुशलता से होता रहे, इसके लिए चारे की आवश्यकता अहम होगी। पिछले वर्ष की तुलना में इस बार काफी ज्यादा चारे की आवश्यकता होगी। कलेक्टर ने कहा कि अपने गौठान के लिए पैरादान महती अभियान की तरह होना चाहिए, लोग ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पैरादान करें। जितनी संख्या में लोग आगे आएंगे, गौठानों के बेहतर संचालन में उतनी ही मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि गौठानों के बेहतर संचालन के लिए, गोधन न्याय योजना के बेहतर क्रियान्वयन के लिए यह आवश्यक है कि गौठान में रह रहे गोधन को पर्याप्त चारा मिल सके। कलेक्टर ने कहा कि पराली जलाना कानूनन अपराध है और इसकी विशेष मानिटरिंग भी अधिकारियों द्वारा की जा रही है। दूसरी ओर पैरादान है। इसमें दान का सुख है। अपने गाँव की बेहतरी के लिए आगे आने का अवसर है। पिछले साल पूरे प्रदेश में उत्साह से भरे किसानों ने पैरादान किये थे जिनके बूते गौठान बेहतर तरीके से संचालित हुए। इस बार पुनः यह अवसर आया है।
अधिकारियों को दिये निर्देश
कलेक्टर ने पंचायत विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिये हैं कि पैरादान की महत्ता के संबंध में गौठान समितियों के माध्यम से ग्रामीणों से चर्चा करें। चर्चा करने से बेहतर माहौल बनता है। एक छोटी सी पहल अभियान का रूप ले लेती है। ग्रामीणों के उपयोगी फीडबैक मिलते हैं और सबकी भागीदारी से योजना को सफल बनाने में मदद मिलती है।

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