छत्तीसगढ़ में नील क्रांति की ओर बढ़तें कदम : इजराइली पद्धति से हो रहा ऑर्गेनिक मछलियों का उत्पादन

छत्तीसगढ़ में नील क्रांति की ओर एक और कदम बढ़ाया है दुर्ग जिले के बोड़ेगांव के किसान जंपाला रत्नाकर ने। उनका फिश फार्म यूनिट केवल 13 हजार स्क्वायर मीटर में फैला है। यह एकड़ का चौथा हिस्सा है, लेकिन यहां लगभग उतनी ही मछलियां पल रही हैं, जितनी मछली पालन के लिए बनाए गए 50 एकड़ के तालाब में पलतीं। यह कमाल इजराइली पद्धति आरएएस (रिसाइक्लिंग एक्वा सिस्टम) का सहारा लेकर किया गया है।

रायपुर (छत्तीसगढ़)। स्टेनलेस स्टील से बनी यह भारत की दूसरी आरएएस यूनिट है जिसमें सबसे आधुनिक तकनीक से मछली पालन किया जा रहा है। स्टेनलेस स्टील का ऐसा दूसरा यूनिट बंगलुरू में है। इसी तरह की अत्याधुनिक तकनीक वाले दो अन्य यूनिट इंदौर और हैदराबाद में हैं। यूनिट में मछलियों की बढ़त हो रही है। जिसकी पहली खेप बाजार में वे अप्रैल तक आएगी। रत्नाकर ने बताया कि प्लांट में 240 टन मछलियों के उत्पादन का लक्ष्य है। कोशिश रहेगी कि हर दिन कम से कम एक टन मछलियां वे बेच सकें।
उन्होंने बताया कि यूनिट की कुल लागत लगभग 3 करोड़ रुपए की है। इसमें 20 लाख रुपए का अनुदान राज्य शासन की ओर से नील क्रांति अभियान के अंतर्गत दिया गया है। इस यूनिट में वे मत्स्यपालन का प्रशिक्षण भी देंगे। दुर्ग-भिलाई क्षेत्र में अभी मछलियां आंध्रप्रदेश और कोलकाता से बड़ी मात्रा में आ रही हैं। स्थानीय बाजार में डिमांड की तुलना में सप्लाई काफी कम है। स्थानीय स्तर पर बड़े पैमाने पर मछलीपालन होने पर आय की नई संभावनाएं पैदा होंगी। रत्नाकर ने बताया कि हर दिन लगभग 60 किलोग्राम सूखी मछली बीट निकलने की संभावना है। अभी इसका बाजार भाव एक हजार रुपए है। इस तरह केवल मछली बीट बेचकर ही लगभग 60 हजार रुपए की आय हो सकती है।
यूनिट में उत्पादित होने वाली मछलियां पूरी तरह से आर्गेनिक होंगी। इसके लिए मछलियों को सभी तरह के संक्रमण से मुक्त करने बायो चिप लगाई गई है। यह बायो चिप न्यूजीलैंड से मंगाई गई है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें एक खास तरह का बैक्टीरिया है जो मछलियों में पनपने वाले और इसे नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को खा लेता है।
इस आरएएस यूनिट में अलग-अलग साइज के टैंक बनाये गए हैं। इन टैंकों के माध्यम से अलग-अलग तरह के स्पानों को रखे जाने की व्यवस्था है। साथ ही पूरे समय में पानी का शुद्धीकरण भी किया जाता है ताकि मछली की बीट से पानी सुरक्षित रह सके। इसमें पांच तरह की व्यवस्था है पहली ड्रम फिल्ट्रेशन की, दूसरा चिप फिल्ट्रेशन की, तीसरा डिगैसिंग, चैथा ओजोनाइजेशन और पांचवां डिसाल्व आक्सीजन मशीन। पानी फिल्ट्रेशन होने की वजह से मछलियां आर्गेनिक रहेंगी, बीमारी से मुक्त रहेंगी। आक्सीजन की पर्याप्त व्यवस्था से मछलियों को किसी तरह से नुकसान नहीं होगा।