मुंबई: सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर रणवीर अल्लाहबादिया के एक सवाल ने न केवल जनता के आक्रोश को जन्म दिया, बल्कि राज्य की विभिन्न एजेंसियों को भी सक्रिय कर दिया। ऑनलाइन शो ‘इंडियाज गॉट लैटेंट’ में की गई टिप्पणी को लेकर महाराष्ट्र साइबर विभाग ने अल्लाहबादिया, कॉमेडियन समय रैना और अन्य कलाकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। आरोप है कि शो के माध्यम से अश्लील सामग्री प्रसारित की गई।
राजनीतिक और कानूनी प्रतिक्रिया
इस विवाद के बाद कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी, वहीं संसदीय स्थायी समिति में भी इस मुद्दे पर बहस हुई। इस बहस के केंद्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसके संवैधानिक प्रतिबंध रहे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बहुसंख्यक समाज की मान्यताओं का प्रभाव अक्सर राज्य की संस्थाओं पर भी पड़ता है, जिससे कानूनी कार्रवाई के फैसले प्रभावित होते हैं।
क्या सुप्रीम कोर्ट का ‘अवीक सरकार’ फैसला राहत देगा?
भारत में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अश्लीलता से जुड़े कानून स्पष्ट हैं। भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 294 और आईटी एक्ट की धारा 67 अश्लील सामग्री के विक्रय, प्रदर्शन या प्रसारण को अपराध मानती है।
लेकिन भारत में अश्लीलता से जुड़ी न्यायिक व्याख्या समय के साथ बदली है। 1964 में सुप्रीम कोर्ट ने रंजीत उदेशी बनाम महाराष्ट्र सरकार मामले में ‘हिक्लिन टेस्ट’ अपनाते हुए डी.एच. लॉरेंस के उपन्यास ‘लेडी चैटरलीज़ लवर’ पर प्रतिबंध लगाया था। इसके विपरीत, 2014 में अवीक सरकार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘कम्युनिटी स्टैंडर्ड्स टेस्ट’ अपनाते हुए कहा कि किसी भी सामग्री को संपूर्ण रूप में देखा जाना चाहिए, न कि अलग-थलग हिस्सों पर निर्णय लिया जाए।
भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर दो दृष्टिकोण
भारत में मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता को लेकर दो अलग-अलग धाराएं देखी गई हैं:
- संरक्षणवादी दृष्टिकोण: इसमें यह मान्यता दी जाती है कि नागरिक हिंसक प्रवृत्ति के हो सकते हैं, इसलिए राज्य को उन्हें ‘अवांछित भाषण’ से बचाने का अधिकार है।
- उदारवादी दृष्टिकोण: इसमें नागरिकों को जागरूक और विवेकशील माना जाता है, इसलिए उन्हें यह तय करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वे क्या देखना, सुनना और बोलना चाहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर यह सुनिश्चित किया है कि भाषण और समाज में अव्यवस्था के बीच स्पष्ट संबंध हो, तभी उस पर प्रतिबंध लगाया जाए। अब देखने वाली बात होगी कि रणवीर अल्लाहबादिया और अन्य कलाकारों पर दर्ज मामले में सुप्रीम कोर्ट क्या रुख अपनाता है और क्या ‘अवीक सरकार’ मामले का निर्णय इस विवाद में कोई राहत दे सकता है।
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