दुर्ग (छत्तीसगढ़)। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा है कि संवैधानिक मसलों पर संघर्ष के लिए सदन में मौजूदगी जरूरी है, इसलिए सर्व आदिवासी समाज ने चुनाव लडऩे का फैसला किया गया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस-भाजपा दोनों आदिवासियों की हितचिंतक नहीं है। ऐसे में समाज ने खुद सामने आकर संघर्ष करने का फैसला किया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री नेताम ने बताया कि सर्व आदिवासी समाज की ओर से आरक्षित 29 सीटों के अलावा 20 से 40 फीसदी अपनी आबादी वाले 20 विधानसभाओं में भी प्रत्याशी उतारा जाएगा। समाज अनारक्षित सीटों पर समान विचारधारा वाले दूसरे समाज के लोगों को भी चुनावी मैदान में उतारेगा।
संक्षिप्त प्रवास पर दुर्ग पहुंचे कांकेर के पूर्व सांसद अरविंद नेताम ने पत्रकारों से चर्चा में इसका खुलासा किया। उन्होंने राजनीतिक व्यवस्था, नौकरशाही, नक्सल आंदोलन, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर खुल कर अपने विचार रखे। उन्होंने बताया कि राज्य निर्माण के समय से बाबा साहब के बनाए कानून का ईमानदारी से पालन हो इस मकसद से सर्व आदिवासी समाज ने अपना काम शुरू किया था।
आदिवासी समाज ने महसूस किया कि जिन सरकारों पर कानून के परिपालन की जिम्मेदारी है, वही सरकारें कानून तोड़ रही है। लिहाजा आदिवासी समाज ने महसूस किया कि वोट की राजनीति में उतर कर अपना काम बनाया जाए। 2018 में इसमें सफलता नहीं मिली। इन पांच सालों में तैयारी के बाद अब इस बार चुनाव में उतरने का फैसला किया गया है। उन्होंने कहा कि चुनाव में छोटे दलों से गठजोड़ का सहारा भी लिया जाएगा।
पेसा कानून पर गंभीरता से अमल नहीं
नेताम ने कहा कि 1996 में पेसा कानून बनाया गया। ऐसा कानून न पहले बना था और न बनेगा। केंद्र और राज्य, दोनों सरकारें इसकी धज्जिया उड़ा रही है। खनिज संसाधनों के अंधाधुंध दोहन में ग्राम सभा के नियंत्रण के अधिकार को खत्म कर दिया गया। किसी जनप्रतिनिधि ने इसके खिलाफ एक शब्द नही कहा। भविष्य में जंगल भी प्राइवेट सेक्टर में चला जाएगा।
मनमानी रोकने समाज का चुनाव में उतरना जरूरी
नेताम ने कहा कि चुनाव में उतरने समाज का फैसला शौक नहीं मजबूरी है। अबूझमाड़ में माइंस का ठेका गलत ढंग से दिया गया। कंपनी जहां मर्जी बेतहाशा खुदाई कर रही है और उन्हें रोकने वाला भी कोई नही। सिलेगर में दो साल से आदिवासी आंदोलन कर रहे है पर कोई पूछने नहीं है। आदिवासियों के कई सालों से छोटे बड़े आंदोलन चल रहे हैं।
धर्मांतरण पर सेवा भाव से रोक संभव
नेताम ने कहा कि सामाजिक आंदोलन से ही समाज जागता है। आदिवासी समाज के सियासी नेता अपने लोगो की आवाज नही उठाते। धर्मांतरण पर उन्होनें लचर कानून को जिम्मेदार ठहराया। ईसाई मिशनरीज के कई लोग कन्वर्जन के लिए 24 घंटे लोग तलाशते घूमते है। इस पर रोक होना चाहिए। सेवा भाव से दिल जीतेंगे तभी धर्मांतरण रुकेगा। उन्होंने नक्सली मुद्दे पर राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव बताया।