अभिषेक मिश्रा हत्याकांड़ : जानिए किस आधार पर अभियुक्तों को किया गया बरी व दंडि़त

दुर्ग (छत्तीसगढ़)।  राज्य के बहुचर्चित व हाइ प्रोफाइल प्रकरण अभिषेक मिश्रा हत्याकांड पर आज दुर्ग न्यायालय द्वारा फैसला सुना दिया गया है। इस मामले में जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेश श्रीवास्तव ने प्रकरण के दो आरोपी विकास जैन व अजीत सिंह को जिंदगी भर की कैद से दंडि़त किए जाने का फैसला सुनाया है। वहीं एक अन्य अभियुक्त विकास जैन की पत्नी किम्सी (कंबोज) जैन को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया है। इस फैसले को अभियोजन व बचाव पक्ष दोनों ने ही हाइकोर्ट में चुनौती देने की बात कही है।
बता दें कि इस प्रकरण पर अदालत द्वारा 273 पन्नों का फैसला दिया गया है। प्रकरण में अभियोजन पक्ष की ओर से 285 साक्ष्य लेखबद्ध कराए गए, वहीं 34 साक्षी पेश किए गए। साथ ही लगभग 1000 पन्नों में साक्ष्य प्रस्तुत किए गए थे। वही बचाव पक्ष की ओर से 33 प्रतिरक्षा के साथ सुप्रीम कोर्ट व हाइकोर्ट के 50 न्यायदृष्टांश न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए गए। मृतक अभिषेक मिश्रा की गुमशुदगी 9 नवंबर 2015 को हुई थी। उसकी हत्या के आरोप में विकास जैन (31 वर्ष) व अजीत सिंह (47 वर्ष) को 23 दिसंबर 2015 को गिरफ्तार किया गया था। दोनों आरोपियों की निशानदेही पर अजीत सिंह के स्मृति नगर स्थित आवास के गार्डन में दफन अभिषेक का शव बरामद किया गया था। किम्सी (28 वर्ष) की गिरफ्तारी पुलिस ने दिल्ली से 24 दिसंबर 2015 को की थी। जिसके बाद अभियुक्तों को 26 दिसंबर 2015 को जेल भेज दिया गया था। सभी अभियुक्त गिरफ्तारी के बाद से फैसला सुनाए जाने तक जेल में निरुद्ध थे। फैसला जिला सत्र न्यायाधीश राजेश श्रीवास्तव की अदालत में सुनाया गया। अभियुक्त किम्सी  को कोरोना से संक्रमित होने की वजह से न्यायालय नहीं लाया गया था। वहीं विकास जैन व अजीत सिंह को जेल से न्यायालय के समक्ष पेश करने के लिए लाया गया। फैसले की प्रक्रिया के दौरान अभियजन पक्ष की ओर विशेष लोक अभियोजक बालमुकुंद चंद्राकर, अधिवक्ता राजकुमार तिवारी तथा बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता बीपी सिंह व अधिवक्ता उमा भारती विडियों कांफ्रेसिंग के माध्यम से जुड़े थे।
इसलिए किया गया किम्सी को बरी
अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियुक्त किम्सी जैन को महज फोन पर बातचीत के आधार पर आरोपी बनाया गया है, वहीं प्रकरण से कुछ दिनों पूर्व ही सीजिरीयन डिलीवरी हुई थी इस स्थिति में उसका हत्या में सहभागी होना प्रतीत नहीं होता। वहीं अभियोजन पक्ष भी किम्सी की हत्या में संलिप्तता को साबित नहीं कर पाया है। इसके अलावा किम्सी द्वारा विचारण के दौरान प्रस्तुत साक्ष्यों का विरोध भी अभियोजन पक्ष ने नहीं किया है। इसलिए किम्सी कंबोज जैन को सभी आरोपों से दोषमुक्त किया जाता है।
विकास, अजीत को दिया दोषी करार
प्रकरण पर फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि प्रकरण में जो परिस्थितियां प्रमाणित हुई है, वह सभी निश्चयात्मक प्रकृति की है। अभियुक्त विकास जैन व अजीत सिंह की निर्दोषिता पूर्णत: असंगत है। इसके अतिरिक्त परिस्थिति जन्य साक्ष्य की श्रंखला इस प्रकार प्रमाणित हुई है कि व ऐसे किसी संदेह को नहीं छोड़ती है, जो अभियुक्तों को दोषमुक्त करने के लिए पर्याप्त हो। जो परिस्थितियां आरोपी विकास जैन व अजीत सिंह के विरुद्ध प्रमाणित हुई है, वह सभी मानवीय संभावनाओं के तहत यही प्रमाणित करती है कि आरोपीगण ही वे व्यक्ति है, जिन्होंने मृतक अभिषेक की हत्या का षडयंत्र किया और उस षडयंत्र के अग्रसरण में उसकी हत्या किए और हत्या के बाद वैध दंड से बचने के आशय से मृतक के शव और अन्य साक्ष्यों को विलुप्त किया गया। अत: अभियुक्त विकास जैन व अजीत सिंह दोनों को दफा 302, 120 बी, 201 के दंडनीय आरोप से दोष सिद्ध किया जाता है। प्रकरण में दोनों आरोपियों को दफा 302 के तहत उनके अंतिम श्वांस लेने तक आजीवन कारावास तथा दफा 120 बी व 201 के तहत 5-5 वर्ष के कारावास तथा अर्थदण्ड से दंडि़त किया जाता है।
अभियोजन ने की मृत्युदंड की मांग
प्रकरण पर फैसले के दौरान विडियों कांफ्रेसिंग के जरिए जुड़े विशेष लोक अभियोजक बालमुकुंद चद्राकर ने कहा कि 33 वर्ष के अभिषेक मिश्रा की हत्या अभियुक्तों ने क्रूरतम तरीके से की और मृत्यु से पहले ही, मुंह में कपड़ा ढूंस कर बबल शीट में बांध कर जीवित अवस्था में गड्ढें में गाड़ दिए, जो कि विरलतम से विरलतम की श्रेणी में आता है। मृतक अपने पिता का एकलौता पुत्र था और उसकी मृत्यु से उसकी पत्नी व बच्चें अनाथ हो गए। अत: आरोपीगण को मृत्युदंड से दंडि़त किया जाए।
अदालत ने नहीं माना विरलतम से विरलतम प्रकरण
प्रकरण को अदालत ने विरलतम से विरलतम श्रेणी मानने से इंकार कर दिया। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायादृष्टांश का उल्लेख करते हुए कहा कि आरोपीगण ने पूर्व नियोजित योजना के तहत मृतक की निर्ममता पूर्वक हत्या किए है, लेकिन आरोपी विकास जैन व अजीत सिंह के पक्ष में मृतक द्वारा विकास की पत्नी किम्सी पर शारीरिक संबंध बनाने के दवाब डाला जाना दोनों आरोपियों के पक्ष में शमनकारी परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए यह निष्कर्ष है कि आरोपीगण का अपराध विरलतम से विरलतम की श्रेणी में नहीं आता है। साथ ही अदालत ने यह भी कहा है कि प्रकरण में ऐसा साक्ष्य नहीं है कि आरोपीगण ने मृतक अभिषेक को जीवित अवस्था में दफनाया था। अत: अभियुक्तों को मृत्यदंड से दंडि़त नहीं किया जा सकता।
अभियोजन व बचाव पक्ष करेंगे हाइकोर्ट में अपील
प्रकरण पर अभियोजन पक्ष की ओर से उपस्थित विशेष लोक अभियोजक   बालमुकुंद चंद्राकर व अधिवक्ता राजकुमार तिवारी ने न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का स्वागत किया है। साथ ही उन्होंने प्रकरण में अभियुक्त किम्सी के बरी किए जाने पर हाइकोर्ट में अपील किए जाने की बात कही। उन्होंने कहा कि ब्लाइंड मर्डर की इस गुत्थी को सुलक्षाने में पुलिस की भूमिका व मेहनत सराहनीय थी। जिसकी बदौलत मात्र परिस्थिति जन्य साक्ष्यों के आधार पर अभियुक्तों को सजा दिलाने में सफलता मिली। वहीं बचाव पक्ष के अधिवक्ता बीपी सिंह ने अभियुक्तों को दोषी करार दिए जाने के फैसले को चुनौती दिए जाने की बात कही है। उन्होंने कहा कि आरोपीगणों को महज परिस्थिति जन्य साक्ष्यों के आधार पर दंडि़त किया गया है। जबकि पुलिस अधिकांश साक्ष्यों को अदालत के समक्ष प्रमाणित करने में असफल रही है। जिसको लेकर वे हाइकोर्ट में अपील दाखिल करेंगे। बता दें कि मामले में आरोपी विकास जैन व अजीत सिंह की तरफ से अधिवक्ता बीपी सिंह ने पैरवी की थी। वहीं किम्सी जैन के पक्ष में अधिवक्ता उमा भारती साहू ने पैरवी की थी।