नई दिल्ली। बाबरी विध्वंस आपराधिक मामले में लखनऊ की विशेष अदालत का फैसला 30 सितंबर तक आएगा। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई कर रहे विशेष जज एस के यादव की ट्रायल की स्टेट्स रिपोर्ट देखने के बाद मामले की सुनवाई पूरी करने की समय सीमा को एक महीना बढ़ाकर 30 सितंबर तक कर दिया है। पहले 31 अगस्त तक का समय ट्रायल पूरी करने के लिए दिया गया था। मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत कई बड़े नेता आरोपी हैं।
बता दें कि 24 जुलाई को वरिष्ठ बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 1992 में हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में विशेष सीबीआई अदालत के सामने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए अपना बयान दर्ज कराया था। आडवाणी लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत के सामने वीडियो लिंक के जरिए पेश हुए थे। 4.5 घंटे तक चली सुनवाई के दौरान अदालत ने आडवाणी से 100 से अधिक सवाल पूछे. आडवाणी के वकील ने कहा था कि अपने खिलाफ सभी आरोपों से उन्होंने इनकार किया।
8 मई को मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल को पूरा करने के लिए 31 अगस्त, 2020 तक का समय दिया था। तब कोर्ट ने कहा था कि लखनऊ में सीबीआई की विशेष अदालत अगस्त अंत तक मुकदमे को पूरा करे और फैसला दे। CBI कोर्ट अगस्त की समयसीमा का उल्लंघन ना करे। CBI कोर्ट को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं का उपयोग करना चाहिए। स्पेशल जज एस के यादव ने सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी लिखकर और समय बढ़ाने की मांग की थी। 20 अप्रैल को ही 9 महीने की सीमा पूरी हो चुकी है।
19 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा के दिग्गज नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, एमएम जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह और अन्य के खिलाफ बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले की साजिश की सुनवाई कर रहे लखनऊ की सीबीआई कोर्ट के विशेष जज को निर्देश दिया था कि वो नौ महीने में ट्रायल पूरा कर फैसला सुनाएं। इसके साथ ही पीठ ने 30 सितंबर को रिटायर हो रहे सीबीआई जज एसके यादव के कार्यकाल को भी ट्रायल पूरा होने तक बढ़ाने का आदेश जारी किया था। फैसला सुनाते हुए जस्टिस आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने निर्देश दिया था कि जज 6 महीने में सुनवाई पूरी करेंगे और तीन महीने में फैसला लिखकर सुनाएंगे।
19 अप्रैल, 2017 को जस्टिस पीसी घोष और जस्टिस आरएफ नरीमन की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा आरोपमुक्त किए जाने के खिलाफ सीबीआई द्वारा दायर अपील की अनुमति देकर आडवाणी, जोशी, उमा भारती और 13 अन्य भाजपा नेताओं के खिलाफ साजिश के आरोपों को बहाल किया था। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए पीठ ने रायबरेली की एक मजिस्ट्रेट अदालत में लंबित अलग मुकदमे को भी स्थानांतरित कर दिया और इसे लखनऊ सीबीआई कोर्ट में आपराधिक कार्यवाही के साथ जोड़ दिया। शीर्ष अदालत ने मामले में दो साल में दिन-प्रतिदिन सुनवाई कर ट्रायल को समाप्त करने का आदेश दिया था और कहा था कि विशेष जज का ट्रांसफर नहीं होगा।