नई दिल्ली, 14 जून 2025
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शनिवार को कांग्रेस पार्टी पर पाकिस्तान को परमाणु शक्ति बनने देने को लेकर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि 1980 के दशक में पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई न करना भारत की “ऐतिहासिक भूल” थी, जिसका खामियाजा आज भी देश और क्षेत्र को भुगतना पड़ रहा है।

मुख्यमंत्री सरमा ने X (पूर्व में ट्विटर) पर एक लंबी पोस्ट में कहा,
“आज जब दुनिया परमाणु खतरे को समाप्त करने के लिए निर्णायक कार्रवाई करती है, तब भारत की 1980 के दशक की निष्क्रियता एक दुखद उदाहरण है कि क्या हो सकता था — और क्या नहीं हुआ।”
🔍 मुख्य बिंदु: भारत ने क्यों गंवा दिया ऐतिहासिक मौका?
- भारतीय खुफिया एजेंसी RAW के पास इस बात के ठोस प्रमाण थे कि पाकिस्तान के काहूटा संयंत्र में यूरेनियम संवर्धन का कार्य चल रहा है।
- इज़राइल ने सहयोग की पेशकश की थी, जिसमें खुफिया जानकारी से लेकर संयुक्त हमले की योजना शामिल थी। जामनगर एयरबेस को संभावित लॉन्चपैड के रूप में चिन्हित किया गया था।
- भारतीय सेना ने भी काहूटा पर पूर्व-emptive स्ट्राइक के लिए पूरी सहमति जताई थी।
- भारत के पास तब यह कार्य करने की क्षमता और राजनीतिक सहमति दोनों थी।
❌ लेकिन आखिरी समय पर क्या हुआ?
- तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया के डर से कदम पीछे खींच लिया।
- इसके बाद राजीव गांधी ने विदेशी दबाव में इस योजना को पूरी तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया और राजनयिक समाधान को प्राथमिकता दी।
⚠️ इसके दुष्परिणाम
- 1988 में राजीव गांधी ने पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो के साथ ‘नो-स्ट्राइक न्यूक्लियर एग्रीमेंट’ पर हस्ताक्षर किए।
- 1998 में पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण कर दिया।
- भारत को एक महंगे परमाणु हथियारों की दौड़ में घसीटा गया।
- कारगिल युद्ध, आतंकी हमले, और सीमा पार घुसपैठ जैसे कई मुद्दे पाकिस्तान की परमाणु ढाल के कारण बढ़ते गए।
- सरमा ने कहा, “आज भी पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप को रोकने और अपने ‘दुश्मन राष्ट्र’ के रूप में व्यवहार को वैध ठहराने के लिए परमाणु ब्लैकमेल का सहारा लेता है।”
🧾 वर्तमान पर कटाक्ष
सरमा ने कहा कि 2024 के आम चुनावों में CPI(M) जैसी कांग्रेस समर्थित पार्टियों ने अपने घोषणापत्र में भारत के परमाणु प्रतिरोध को वापस लेने की बात कही थी, जो न सिर्फ राष्ट्र सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है बल्कि पूर्व की गलतियों को दोहराने जैसा है।
🇮🇳 नेतृत्व में अंतर
सरमा ने कहा कि जहां सच्चे नेतृत्व में दूरदृष्टि और साहस की जरूरत होती है, वहीं कांग्रेस ने सावधानी और देरी का रास्ता चुना। उन्होंने इसे एक ऐतिहासिक चूक बताया, जिससे भारत की दीर्घकालिक रणनीतिक सुरक्षा को नुकसान हुआ।
