झीरम घाटी हमले की 12वीं बरसी पर गरमाई सियासत, जांच की निष्पक्षता पर उठे सवाल

रायपुर, 26 मई 2025।
झीरम घाटी नक्सली हमले की 12वीं बरसी पर एक बार फिर छत्तीसगढ़ की राजनीति गर्मा गई है। हमले की जांच को लेकर कांग्रेस और भाजपा के बीच तीखे आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि “12 साल बाद भी झीरम हमले की जांच अधूरी है और NIA ने लगातार जांच में अड़ंगे डाले हैं।”

पूर्व सीएम बघेल ने कहा, “FIR में जिन लोगों के नाम दर्ज थे, उनसे अब तक पूछताछ नहीं हुई है। इससे NIA की जांच की गंभीरता पर सवाल खड़े होते हैं।” उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान को भी याद दिलाया जिसमें उन्होंने झीरम कांड की जांच 6 महीने में पूरी करने का वादा किया था। बघेल ने कहा, “पीएम खुद बस्तर आकर वादा कर चुके हैं, लेकिन 12 साल बाद भी सच्चाई सामने नहीं आई।”

SIT गठन को लेकर आरोप

भूपेश बघेल ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने SIT का गठन किया था, लेकिन NIA कोर्ट चली गई और कोर्ट से अनुमति मिलने तक कांग्रेस की सरकार चली गई। उन्होंने भाजपा पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि, “कोल और शराब घोटाले जैसे मामलों की जांच कई एजेंसियों से करवाई जा सकती है, लेकिन झीरम जैसे संवेदनशील मामले में केंद्र सरकार SIT गठन से रोकती है।”

भाजपा नेताओं की प्रतिक्रिया

भाजपा नेता रामविचार नेताम ने झीरम कांड को कांग्रेस की भीतरी राजनीति का नतीजा बताते हुए कहा कि “दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए।” उन्होंने कांग्रेस को आत्ममंथन की सलाह दी। वहीं भाजपा विधायक मोतीलाल साहू ने कहा कि “भूपेश बघेल जो सबूत सामने रख रहे हैं, उससे कांग्रेस की बदनामी ही होगी।”

कांग्रेस का पलटवार

कांग्रेस नेता विकास उपाध्याय ने मोतीलाल साहू पर पलटवार करते हुए कहा कि “साहू खुद उस हमले के प्रत्यक्षदर्शी हैं, जो पहले कांग्रेस में थे और अब भाजपा की भाषा बोल रहे हैं।” उन्होंने झीरम कांड की तुलना पहलगाम आतंकी हमले से करते हुए कहा कि “जिस तरह वहां के पीड़ितों को न्याय नहीं मिला, उसी तरह झीरम के पीड़ित भी आज तक न्याय से वंचित हैं।”

पदयात्रा पर तंज और जवाब

पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर द्वारा कांग्रेस की पदयात्रा पर स्केटिंग की सलाह देने पर उपाध्याय ने तीखा जवाब देते हुए कहा, “पदयात्राओं से ही सरकारें बदली हैं, और यही पदयात्रा एक बार फिर भाजपा की सरकार को बदल देगी।”

निष्कर्ष

झीरम घाटी नक्सली हमले की बरसी पर एक बार फिर राज्य की राजनीति में तीखा ध्रुवीकरण देखने को मिला है। जांच की पारदर्शिता, न्याय की प्रतीक्षा और राजनीतिक आरोपों ने इस गंभीर मामले को एक बार फिर सार्वजनिक बहस का मुद्दा बना दिया है। पीड़ित परिवार आज भी इंसाफ की उम्मीद लगाए बैठे हैं, लेकिन राजनीतिक दल इसे आगामी चुनावों के लिए एक हथियार के रूप में भी इस्तेमाल करते दिखाई दे रहे हैं।

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