अब नहीं छिपेंगे जंगलों में! छत्तीसगढ़ की नई सरेंडर नीति के बाद माओवादियों का आत्मसमर्पण तेज़

छत्तीसगढ़ में माओवादियों को मुख्यधारा से जोड़ने की दिशा में एक बड़ी कामयाबी सामने आई है। राज्य सरकार की नई “नक्सली आत्मसमर्पण, पीड़ित राहत और पुनर्वास नीति 2025” के लागू होते ही आत्मसमर्पण का सिलसिला तेज़ हो गया है।

11 अप्रैल को, बीजापुर जिले के 22 माओवादी, जिनमें तीन एरिया कमेटी मेंबर (ACM) भी शामिल हैं, तेलंगाना के मुलुगु जिले में आत्मसमर्पण कर चुके हैं। इससे पहले जनवरी से अप्रैल 2025 के बीच तेलंगाना में 247 माओवादियों ने सरेंडर किया, जिनमें से 99% माओवादी छत्तीसगढ़ के निवासी थे।

🔁 आत्मसमर्पण के लिए तेलंगाना क्यों पसंद?

इसका मुख्य कारण छत्तीसगढ़ में माओवादियों के खिलाफ चल रहा आक्रामक अभियान है। 2025 में अब तक 140 माओवादी मारे जा चुके हैं, जिससे उनमें भय व्याप्त है। आत्मसमर्पण करने वाले कई माओवादी बताते हैं कि तेलंगाना में सुरक्षा और सम्मान की भावना ज़्यादा है, वहीं छत्तीसगढ़ में अब तक यह भरोसा नहीं था।

लेकिन अब समीकरण बदल सकते हैं, क्योंकि छत्तीसगढ़ सरकार ने 11 अप्रैल से लागू नीति में कई आकर्षक सुविधाएं देने की घोषणा की है, जैसे—

  • ₹50,000 तत्काल सहायता
  • ₹10,000 मासिक भत्ता तीन साल के लिए
  • शहरी क्षेत्र में 1,742 वर्गफुट का प्लॉट या ग्रामीण क्षेत्र में एक हेक्टेयर कृषि भूमि
  • स्किल ट्रेनिंग और 120 दिनों में पुनर्वास की गारंटी

📉 तेलंगाना बनाम छत्तीसगढ़ – पुनर्वास पैकेज तुलना:

राज्यतत्काल सहायताभूमिACM के लिए सहायता
तेलंगाना₹25,000कोई भूमि प्रावधान नहीं₹4 लाख
छत्तीसगढ़₹50,000शहरी प्लॉट/ग्रामीण ज़मीन₹10,000 मासिक + भूमि

तेलंगाना के आईजी चंद्रशेखर रेड्डी ने कहा कि राज्य में माओवादियों को सम्मानजनक पुनर्वास मिलता है। “हम उनका आधार कार्ड, बैंक खाता खुलवाने में मदद करते हैं और स्वास्थ्य सुविधा भी मुहैया कराते हैं।”

👥 किसने आत्मसमर्पण किया?

2025 में अब तक आत्मसमर्पण करने वालों में—

  • 5 डिवीजनल कमेटी मेंबर (DCM)
  • 11 एरिया कमेटी मेंबर (ACM)
  • 28 पार्टी सदस्य
  • 1 कुरियर
  • 202 मिलिशिया सदस्य

इनमें कई माओवादी बीजापुर और सुकमा जिलों के हैं, जो भद्राद्री-कोठागुडेम और मुलुगु जैसे क्षेत्रों में रिश्तेदारों के माध्यम से पुलिस के संपर्क में आते हैं।

🧓 62 वर्षीय माओवादी ने कहा अलविदा बंदूक को

सोमैया उर्फ सुरेन्द्र, जिन्होंने 32 साल जंगल में बिता दिए, जनवरी में जयशंकर भूपालपल्ली जिले में आत्मसमर्पण किया। वे माओवादी संगठन के कृषि विभाग के प्रमुख थे।

राज्य की खुफिया एजेंसी के अनुसार, “ऐसे वरिष्ठ माओवादी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं, और उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं की सख्त जरूरत होती है। सरकार उन्हें हर तरह की मदद दे रही है।”

🔚 निष्कर्ष:

छत्तीसगढ़ सरकार की नई नीति ने जहां माओवादियों को नया रास्ता दिखाया है, वहीं तेलंगाना की निरंतर नीति और सम्मानजनक व्यवहार ने अब तक भरोसे की मिसाल कायम की है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि माओवादी आत्मसमर्पण के लिए किस राज्य को प्राथमिकता देते हैं।

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