कुलदीप सेंगर को मिली जमानत के खिलाफ CBI सुप्रीम कोर्ट पहुंची, हाईकोर्ट के फैसले को बताया कानून के खिलाफ

CBI challenges Kuldeep bail। उन्नाव नाबालिग दुष्कर्म मामले में पूर्व उत्तर प्रदेश विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट से मिली जमानत के खिलाफ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। CBI ने हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें सेंगर की सजा निलंबित करते हुए उन्हें अपील लंबित रहने तक जमानत दी गई थी।

CBI ने इस संबंध में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर कर कहा है कि हाईकोर्ट का फैसला न केवल कानूनी रूप से अस्थिर है, बल्कि इससे POCSO अधिनियम, 2012 की मूल भावना भी कमजोर होती है।


“जनप्रतिनिधि सार्वजनिक सेवक नहीं” — इस निष्कर्ष पर CBI की आपत्ति

दिल्ली हाईकोर्ट ने जमानत देते हुए कहा था कि कुलदीप सेंगर को POCSO एक्ट की धारा 5(c) और IPC की धारा 376(2) के तहत “लोक सेवक (Public Servant)” नहीं माना जा सकता। इसी आधार पर अदालत ने गंभीर अपराध की धाराओं को लागू न मानते हुए सजा निलंबित की।

हालांकि, CBI ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि
एक विधायक को सार्वजनिक सेवक की श्रेणी से बाहर मानना अत्यंत संकीर्ण और तकनीकी व्याख्या है, जो कानून के उद्देश्य के विपरीत है।


POCSO एक कल्याणकारी कानून, संकीर्ण व्याख्या नहीं हो सकती: CBI

CBI ने कहा कि POCSO कानून एक विशेष सामाजिक सुरक्षा कानून है, जिसका उद्देश्य बच्चों को यौन अपराधों से अधिकतम संरक्षण देना है।
ऐसे में कानून की व्याख्या उद्देश्यपरक (Purposive Interpretation) होनी चाहिए, न कि सीमित और तकनीकी।

एजेंसी ने स्पष्ट किया कि सत्ता और प्रभाव का दुरुपयोग इस मामले में एक गंभीर प्रतिकूल परिस्थिति है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।


उम्रकैद मामलों में सजा निलंबन अपवाद होना चाहिए

CBI ने यह भी तर्क दिया कि
लंबी कैद अपने आप में उम्रकैद की सजा निलंबित करने का आधार नहीं हो सकती, खासकर तब, जब मामला नाबालिग से दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध से जुड़ा हो।

याचिका में सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा गया कि—

  • अपराध की गंभीरता
  • आरोपी की भूमिका
  • पीड़िता व गवाहों की सुरक्षा
  • आरोपी का सामाजिक प्रभाव

जमानत या सजा निलंबन के खिलाफ मजबूत आधार बनाते हैं।


पीड़िता की सुरक्षा पर खतरे की आशंका

CBI ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया कि कुलदीप सेंगर की रिहाई से पीड़िता और उसके परिवार की सुरक्षा को वास्तविक खतरा है।
एजेंसी ने चेतावनी दी कि ऐसे प्रभावशाली दोषी की जमानत
न्याय व्यवस्था पर जनता के भरोसे को कमजोर कर सकती है, खासकर बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों में।


2019 में उम्रकैद, 2020 में 10 साल की सजा

गौरतलब है कि—

  • कुलदीप सेंगर को 2019 में उन्नाव जिले में नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
  • यह मामला देशभर में चर्चा का विषय बना था।
  • पीड़िता के परिवार ने लगातार धमकी, उत्पीड़न और हमलों के आरोप लगाए थे।
  • सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कई संबंधित मामलों की जांच भी CBI ने की थी।
  • इसके अलावा, पीड़िता के पिता की हत्या से जुड़े मामले में सेंगर को 2020 में 10 साल की सजा भी सुनाई गई थी।

अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी नजर

अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला न केवल कुलदीप सेंगर मामले के लिए, बल्कि POCSO कानून की व्याख्या और भविष्य के ऐसे मामलों के लिए भी अहम साबित हो सकता है।

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