रायपुर।
physiotherapy success story Chhattisgarh: साल 2000 में जब छत्तीसगढ़ के महासमुंद जैसे इलाकों में बहुत कम लोग जानते थे कि फिजियोथेरेपी क्या होती है, तब आकाश चोपड़ा ने इसे अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। उन्होंने इस पेशे को सिर्फ रोज़गार नहीं, बल्कि पीड़ितों की सेवा और उन्हें फिर से आत्मनिर्भर बनाने का माध्यम चुना।
आज physiotherapy की बात होती है, तो आकाश चोपड़ा का नाम प्रेरणा के रूप में सामने आता है।
निजी दर्द से जन्मी सेवा की भावना
आकाश चोपड़ा के इस सफर के पीछे निजी अनुभव छिपा है। उनकी दादी ब्रेन ट्यूमर के कारण लकवाग्रस्त हो गई थीं। वहीं, परिवार के एक करीबी सदस्य लंबे समय तक मस्कुलो-स्केलेटल दर्द के कारण बिस्तर पर रहे।
इन अनुभवों ने उन्हें यह समझाया कि समय पर रिहैबिलिटेशन किसी की पूरी ज़िंदगी बदल सकता है।
इलाज नहीं, आत्मविश्वास लौटाने का प्रयास
आकाश चोपड़ा मानते हैं कि फिजियोथेरेपी सिर्फ शरीर नहीं, मन को भी ठीक करती है।
रायपुर स्थित नवकार फिजियोथेरेपी एंड न्यूरो रिहैब सेंटर के जरिए वे उन लोगों को सहारा दे रहे हैं, जो बीमारी, दुर्घटना या निराशा के कारण टूट चुके होते हैं।
43 वर्षीय चोपड़ा कहते हैं,
“जब मरीज की आंखों में दर्द की जगह भरोसा दिखता है, वही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। जब कोई टूटे कदम ज़मीन पर टिकते हैं, तो दिल गर्व से भर जाता है।”
2009 से अब तक 10 हजार से अधिक मरीजों का इलाज
गोवा, ओडिशा और अब रायपुर में सेवाएं दे चुके आकाश चोपड़ा अब तक करीब 10,000 मरीजों का सफल इलाज कर चुके हैं। उनकी न्यूरो रिहैबिलिटेशन फिजियोथेरेपी ने कई असंभव दिखने वाले मामलों को संभव बनाया।
स्ट्रोक से उबरकर फिर पढ़ाई में लौटा मेडिकल छात्र
26 वर्षीय एक गरीब मेडिकल PG छात्र को गंभीर स्ट्रोक के बाद व्हीलचेयर पर आना पड़ा। एक तरफ शरीर ने साथ छोड़ा, तो दूसरी तरफ सपने अधर में लटक गए।
लगातार फिजियोथेरेपी और दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर वह कुछ महीनों में दोबारा चलने लगा। आज वह फिर से कॉलेज कैंपस में है और पढ़ाई जारी रखे हुए है।
हादसे के बाद फिर खड़ी हुई पीएचडी छात्रा
एक युवा विवाहित पीएचडी स्कॉलर सड़क दुर्घटना में कमर से नीचे लकवाग्रस्त हो गईं। बिस्तर पर जिंदगी सिमट गई थी।
आकाश चोपड़ा की गहन फिजियोथेरेपी से उन्होंने धीरे-धीरे खड़े होना और चलना सीखा।
अनिता सेठी कहती हैं,
“दुर्घटना के बाद जीवन निराशा से भर गया था। आज मैं खड़ी हो सकती हूं, चल सकती हूं और अपनी पीएचडी जारी रख पा रही हूं। यह सब फिजियोथेरेपी की वजह से संभव हुआ।”
छह हफ्तों में दोबारा स्टीयरिंग थामने वाला ओला ड्राइवर
एक ओला कैब ड्राइवर ड्यूटी के दौरान स्ट्रोक का शिकार हुआ। परिवार का एकमात्र कमाने वाला होने के कारण हालात बेहद मुश्किल थे।
लगातार छह हफ्तों की फिजियोथेरेपी के बाद वह फिर से चलने लगा और आज दोबारा गाड़ी चला रहा है।
दर्द से राहत, काम पर वापसी
एक निजी अस्पताल की वार्ड गर्ल गंभीर जठरांत्र संबंधी बीमारी के कारण लकवाग्रस्त हो गई थी। उपचार और रिहैबिलिटेशन के बाद वह पूरी तरह स्वस्थ होकर फिर से मरीजों की सेवा कर रही है।
मार्केटिंग मैनेजर मोहन धानी बताते हैं,
“छह साल से कमर दर्द से परेशान था। दो ही सत्रों में 70 प्रतिशत दर्द कम हुआ और चलना-फिरना आसान हो गया।”
physiotherapy success story Chhattisgarh केवल इलाज की कहानी नहीं है, बल्कि यह उम्मीद, आत्मविश्वास और पुनर्जीवन की मिसाल है।
आकाश चोपड़ा ने यह साबित कर दिया है कि सही समय पर सही रिहैबिलिटेशन मिले, तो ज़िंदगी दोबारा चलना सीख सकती है।
