रायपुर |
छत्तीसगढ़ में Hasdeo Arand forest cutting एक बार फिर सुर्खियों में है। कोयला खनन के लिए जारी जंगल कटाई ने आदिवासी समुदायों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और सरकार के बीच टकराव को और तेज कर दिया है। हसदेव अरण्य क्षेत्र में विकास के नाम पर जंगलों का सफाया स्थानीय लोगों की आजीविका और जल स्रोतों पर सीधा असर डाल रहा है।
हसदेव अरण्य: हरियाली पर खनन का दबाव
हसदेव अरण्य देश के सबसे घने वन क्षेत्रों में गिना जाता है।
हालांकि, यहां मौजूद कोयला भंडार के कारण बड़े पैमाने पर खनन परियोजनाएं प्रस्तावित और स्वीकृत की गई हैं। इसके चलते—
- हजारों पेड़ों की कटाई
- वन्यजीवों का आवास नष्ट
- और प्राकृतिक जल स्रोतों में बाधा
जैसी चिंताएं लगातार सामने आ रही हैं।
आदिवासी विरोध और गिरफ्तारियां
जंगल कटाई के खिलाफ स्थानीय आदिवासी समुदाय और संगठन जैसे छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि—
- उनकी जमीन
- उनके घर
- और उनकी संस्कृति
सीधे खतरे में है।
हाल के महीनों में विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस कार्रवाई और गिरफ्तारियों के आरोप भी लगे हैं, जिसने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना दिया है।

NGT में मामला, वन विभाग के आंकड़े
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने हसदेव अरण्य में हो रही कटाई से जुड़े मामलों की सुनवाई की है।
NGT के समक्ष वन विभाग ने जानकारी दी कि—
- 2012 से 2023 के बीच 80 हजार से अधिक पेड़ काटे गए
हालांकि, सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि वास्तविक आंकड़े इससे कहीं अधिक हो सकते हैं।
खनन परियोजनाओं की दोबारा शुरुआत
सरकारी मंजूरी मिलने के बाद कुछ खनन विस्तार परियोजनाएं दोबारा शुरू कर दी गई हैं।
इसके बाद से Hasdeo Arand forest cutting को लेकर पर्यावरणीय चिंताएं और गहरी हो गई हैं।
कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार का रुख पर्यावरण विरोधी है और वह विकास के नाम पर जंगलों की अनदेखी कर रही है।
जल, जंगल और जीवन पर खतरा
हसदेव अरण्य केवल जंगल नहीं, बल्कि—
- हजारों आदिवासी परिवारों का जीवन
- कृषि और वनोपज की आजीविका
- और क्षेत्र का जल संतुलन
है।
जंगल कटाई से नदियों और जलस्रोतों पर असर पड़ रहा है, जिससे आने वाले वर्षों में पानी का संकट गहराने की आशंका है।
विकास बनाम संरक्षण की जंग
छत्तीसगढ़ में यह संघर्ष अब एक बड़े सवाल में बदल चुका है—
👉 क्या विकास की कीमत जंगल और आदिवासी जीवन से चुकाई जाएगी?
Hasdeo Arand forest cutting इस सवाल का प्रतीक बन गई है, जहां खनन हित और पर्यावरण संरक्षण आमने-सामने खड़े हैं।

हसदेव अरण्य में चल रहा संघर्ष केवल एक स्थानीय मुद्दा नहीं, बल्कि देश की पर्यावरण नीति और विकास मॉडल पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि सरकार, न्यायपालिका और समाज मिलकर जंगल, जल और जनजीवन के बीच संतुलन कैसे बनाते हैं।
