रायपुर, 12 दिसंबर 2025।
Jageshwar Avadhia Justice Case: 83 वर्षीय जागेश्वर प्रसाद अवधिया की जिंदगी पिछले 39 वर्षों से न्याय की प्रतीक्षा में थमी हुई है। 100 रुपये की रिश्वत के झूठे आरोप ने न सिर्फ उनका करियर छीन लिया, बल्कि उनके परिवार की खुशियाँ भी उनसे दूर कर दीं। 1986 में दर्ज हुए इस मामले ने उन्हें छह वर्ष तक निलंबन झेलने पर मजबूर किया। इसी दौरान उनका प्रमोशन, इंक्रीमेंट और जीवन की स्थिरता सब कुछ पटरी से उतर गया।
🔹 हाई कोर्ट ने दिया न्याय, लेकिन संघर्ष अभी जारी
Jageshwar Avadhia Justice Case: लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद हाई कोर्ट ने जागेश्वर अवधिया को पूरी तरह निर्दोष करार दिया। हालांकि, यह फैसला भी उनके लिए पर्याप्त नहीं था क्योंकि उनका असली संघर्ष अब शुरू हुआ—
सस्पेंशन अवधि की कटी सैलरी, पेंशन और अन्य लंबित भुगतान की लड़ाई।
उन्होंने 29 सितंबर 2025 को सीआइडीसी (छत्तीसगढ़ अधोसंरचना विकास निगम) के प्रबंध निदेशक को पत्र भेजकर करीब ₹30 लाख की बकाया राशि जारी करने की मांग की।
लेकिन तीन महीने बीतने के बाद भी विभाग सर्विस बुक न मिलने का बहाना बनाकर भुगतान टाल रहा है।
🔹 सीआइडीसी बनाम एमपी: जिम्मेदारी का टकराव
Jageshwar Avadhia Justice Case: सीआइडीसी का तर्क है कि अवधिया वर्ष 2001 में मध्य प्रदेश सड़क परिवहन निगम के कर्मचारी थे, इसलिए भुगतान एमपी द्वारा किया जाना चाहिए।
हालांकि, वास्तविकता इसके उलट है—
- 2004 में सीआइडीसी ने स्वयं उनकी रिटायरमेंट राशि जारी की थी।
- 21 नवंबर 2025 को एमपी सड़क परिवहन निगम ने भी स्पष्ट कर दिया कि जागेश्वर अवधिया सीआइडीसी के ही कर्मचारी हैं।
इसके बावजूद भुगतान प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई है।
🔹 “परिवार टूट गया, पर उम्मीद नहीं टूटी”—अवधिया की पीड़ा
Jageshwar Avadhia Justice Case: अवधिया बताते हैं कि निलंबन और मामले की लंबी अवधि ने उनके बच्चों की पढ़ाई पर असर डाला।
उनकी पत्नी तनाव से जूझते हुए जिंदगी की जंग हार गईं।
आज 83 वर्ष की उम्र में भी वे विभागों के चक्कर काटने को मजबूर हैं।
उनकी आवाज में दर्द साफ झलकता है—
“जिंदगी निकल गई, अब बस हक़ पाने की उम्मीद बची है।”
🔹 विभाग का जवाब: “प्रक्रिया जारी है”
Jageshwar Avadhia Justice Case: सीआइडीसी के प्रबंध निदेशक राजेश सुकुमार टोप्पो ने कहा कि आवश्यक दस्तावेज जुटाए जा रहे हैं और प्रक्रिया पूरी होने के बाद भुगतान किया जाएगा।
लेकिन जागेश्वर अवधिया जैसे बुजुर्ग कर्मचारी के लिए हर बीतता दिन एक और संघर्ष की तरह है।
