ढोकरा–बेलमेटल शिल्पकार हीराबाई झरेका बघेल को राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार, राष्ट्रपति मुर्मु ने किया सम्मानित

Heerabai Baghel National Handicraft Award: 09 दिसंबर 2025/ छत्तीसगढ़ की पारंपरिक धातुकला को नई पहचान दिलाने वाली सारंगढ़–बिलाईगढ़ जिले की सुप्रसिद्ध ढोकरा–बेलमेटल शिल्पकार श्रीमती हीराबाई झरेका बघेल को आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा प्रदत्त यह सम्मान न केवल उनकी कला की सराहना है, बल्कि छत्तीसगढ़ की विरासत का राष्ट्रीय स्तर पर गौरवपूर्ण प्रतिनिधित्व भी है।

सम्मान की यह खबर मिलते ही राज्यभर में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने प्रदेशवासियों की ओर से हीराबाई बघेल को बधाई दी और कहा कि यह उपलब्धि पूरे छत्तीसगढ़ के शिल्पकारों का सम्मान है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार कला-संरक्षण, प्रशिक्षण, कौशल उन्नयन और बाजार विस्तार के लिए लगातार कार्य कर रही है, ताकि ग्रामीण और वनांचल क्षेत्रों की प्रतिभाएं राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उभरकर सामने आएं।


ढोकरा कला की चमक को नई ऊँचाइयाँ

Heerabai Baghel National Handicraft Award: ग्राम पंचायत बैगीनडीह जैसे वनांचल इलाके से निकलकर अपनी सूक्ष्म शिल्पकला के दम पर देशभर में पहचान बनाने वाली हीराबाई बघेल की उपलब्धि कला प्रेमियों के लिए प्रेरणा है। ढोकरा कला सदियों से चली आ रही पारंपरिक तकनीक है, जिसमें धातु से मनोहारी कलाकृतियां तैयार की जाती हैं। हीराबाई बघेल ने इस धरोहर को न केवल संरक्षित किया, बल्कि आधुनिक समय की जरूरतों के अनुरूप इसे नए रूप में गढ़ा है।

उनकी कला में पारंपरिक सौंदर्य, जनजातीय भावनाएं और ग्रामीण जीवन की झलक साफ़ दिखाई देती है। यही कारण है कि उनकी कलाकृतियां देश और विदेश दोनों जगहों पर व्यापक रूप से सराही जाती हैं।


मुख्यमंत्री का संदेश: “यह उपलब्धि प्रदेश की कला-धरोहर का सम्मान”

Heerabai Baghel National Handicraft Award: मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि हीराबाई बघेल की यह उपलब्धि छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोककला और ग्रामीण प्रतिभा का शानदार उदाहरण है।
उन्होंने कहा—
“श्रीमती हीराबाई झरेका बघेल न केवल छत्तीसगढ़ की गौरवमयी परंपराओं को जीवित रख रही हैं, बल्कि उन्होंने राज्य की कला-संस्कृति को राष्ट्रीय मंच पर नई ऊँचाइयाँ दी हैं।”

यह सम्मान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत है और छत्तीसगढ़ की रचनात्मक विरासत को और मजबूत बनाता है।

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