संसद में वंदे मातरम् के 150 वर्ष पर ऐतिहासिक बहस शुरू: पीएम मोदी ने लोकसभा में खोला विमर्श, कांग्रेस की प्रियंका गांधी और गौरव गोगोई भी शामिल

Vande Mataram 150 years debate: संसद के शीतकालीन सत्र में सोमवार को एक ऐतिहासिक क्षण दर्ज हुआ, जब लोकसभा में Vande Mataram 150 years debate की शुरुआत खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। राष्ट्रगीत के 150 वर्ष पूरे होने पर यह बहस सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राष्ट्रीय भावनाओं को एक बार फिर केंद्र में ले आई।

लोकसभा में खुला विमर्श, दो बड़े विपक्षी चेहरे भी शामिल

Vande Mataram 150 years debate: बहस के लिए कांग्रेस ने अपने दो प्रमुख नेताओं — गौरव गोगोई और प्रियंका गांधी वाड्रा — को मैदान में उतारा है। दोनों नेताओं ने वंदे मातरम् की ऐतिहासिक यात्रा और स्वतंत्रता संग्राम में इसकी भूमिका पर अपने विचार रखे।

कल यानी मंगलवार (9 दिसंबर 2025) को राज्यसभा में भी राष्ट्रीय गीत पर बहस शुरू होगी।

गौरव गोगोई की भावनात्मक शुरुआत—बंगाल को नमन

Vande Mataram 150 years debate: लोकसभा में चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने अपना वक्तव्य बंगाल की धरती को प्रणाम करते हुए शुरू किया।
उन्होंने कहा कि बंगाल वह भूमि है जिसने भारत को सुभाष चंद्र बोस, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय और रविंद्रनाथ टैगोर जैसे महानायक दिए।
गोगोई ने आगे कहा कि बंगाल ने केवल वंदे मातरम् ही नहीं, बल्कि अनेक ऐसे गीत दिए जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा दी।

उनके शब्दों में भावुकता और गर्व दोनों की झलक दिखी, और सदन कुछ क्षणों के लिए उस दौर की ऐतिहासिक धड़कनों के साथ जुड़ता हुआ महसूस हुआ।

राज्यसभा और चुनाव सुधारों पर भी बड़ी बहसें तय

Vande Mataram 150 years debate: आने वाले दिनों में संसद सिर्फ वंदे मातरम् पर ही नहीं, बल्कि चुनाव सुधार जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर भी विवादास्पद और व्यापक विमर्श करेगी।

लोकसभा में चुनाव सुधारों पर बहस

  • 9 दिसंबर 2025
  • 10 दिसंबर 2025

राज्यसभा में चुनाव सुधारों पर बहस

  • 10 दिसंबर 2025
  • 11 दिसंबर 2025

इस बहस में इलेक्टोरल रोल्स की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) से लेकर पारदर्शिता बढ़ाने के उपायों तक, लोकतंत्र की प्रक्रिया से जुड़े कई बड़े पहलू शामिल होंगे।

वंदे मातरम् के 150 वर्ष—एक सांस्कृतिक पुनर्स्मरण

राष्ट्रगीत केवल एक कविता नहीं, बल्कि एक भाव है जिसने भारत के स्वतंत्रता संघर्ष को ऊर्जा दी। बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की रचना आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी 150 वर्ष पहले थी।
इस बहस ने पूरे देश में एक बार फिर यह सवाल जगाया है—
हमारी सांस्कृतिक जड़ों और राष्ट्रीय पहचान के बीच वंदे मातरम् की क्या भूमिका है?

सदन में उठती आवाज़ें, नेताओं के तर्क और इतिहास की गूंज—सब मिलकर इस विमर्श को महत्वपूर्ण बना देते हैं।

अब आगे क्या?

लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों में इस सप्ताह राष्ट्रीय गीत और चुनाव सुधारों पर गहन चर्चा जारी रहेगी।
Vande Mataram 150 years debate सिर्फ एक स्मरण नहीं, बल्कि नई पीढ़ी के लिए समझ, संवाद और एकता का अवसर साबित हो रही है।

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