संविधान दिवस सिर्फ औपचारिकता नहीं, मूल्यों का पुनःसंकल्प है: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ

नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को आयोजित संविधान दिवस समारोह में न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने देश को याद दिलाया कि “संविधान दिवस किसी रस्म का नाम नहीं, बल्कि उन साझा मूल्यों की पुनर्पुष्टि है, जो हमारी राष्ट्रीय भावना को एकजुट रखते हैं।” राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और मुख्य न्यायाधीश सुर्या कांंत की उपस्थिति में दिया गया यह संबोधन लोकतंत्र, समानता और न्याय के प्रति गहरी प्रतिबद्धता का प्रतीक रहा।

“संविधान एक जीता-जागता वादा है”

अपने स्वागत भाषण में जस्टिस नाथ ने कहा कि भारत का संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि एक जीवंत वादा है—ऐसा वादा जो हर नागरिक को अधिकार देता है और साथ ही जिम्मेदारियां भी सौंपता है।

उन्होंने कहा कि “विविधताओं से भरे देश में संविधान ही हमारा कम्पास और लंगर है। यह हमें स्थिरता देता है, संस्थाओं को दिशा देता है और सबसे कमजोर नागरिक की रक्षा करता है। नई चुनौतियों और नई पीढ़ियों के साथ यह निरंतर विकसित होता रहा है।”

संविधान दिवस का ऐतिहासिक महत्व

जस्टिस नाथ ने 26 नवंबर 1949 को याद करते हुए कहा कि यह वह दिन था जब नवस्वतंत्र भारत ने लोकतांत्रिक मूल्यों को अपने भविष्य की धुरी बनाया। यह केवल संविधान अपनाने का दिन नहीं था, बल्कि एक राष्ट्र के सामूहिक संकल्प की प्रतिध्वनि था।

उन्होंने कहा कि संविधान दिवस हमें नागरिक अधिकारों के साथ-साथ जिम्मेदारियों का भी स्मरण कराता है, और यह सुनिश्चित करता है कि लोकतांत्रिक संस्थाएं बदलते समय के साथ विकसित होती रहें, किंतु अपनी मूल भावनाओं से न भटके।

राष्ट्रपति मुर्मू और CJI सुर्या कांंत की प्रशंसा

जस्टिस नाथ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की जीवन यात्रा को “दृढ़ता, करुणा और समावेशी नेतृत्व” का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि उनकी यात्रा भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं की ताकत और परिवर्तनकारी क्षमता को दर्शाती है।

मुख्य न्यायाधीश सुर्या कांंत की नेतृत्व क्षमता की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि न्यायपालिका उनके मार्गदर्शन में पारदर्शिता, सुलभता और दक्षता की दिशा में आगे बढ़ रही है।

इसके साथ ही उन्होंने कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा न्यायपालिका, बार और सरकार के बीच संवाद को मजबूत करने और कानूनी सुधारों को आगे बढ़ाने के प्रयासों की भी सराहना की।

सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और संवैधानिक मर्यादा

अपने संबोधन में उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपने व्याख्यात्मक दायित्वों को विनम्रता और सावधानी के साथ निभाता है, क्योंकि उसके निर्णय करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं।
उन्होंने आग्रह किया कि संविधान दिवस हमें संवैधानिक मर्यादा, नागरिक कर्तव्यों और लोकतांत्रिक आचरण के प्रति अधिक सजग बनाए।

नागरिकों को मूल्यों के प्रति सजग रहने की अपील

संवोधन के अंत में जस्टिस नाथ ने कहा कि आज की चुनौतियों के बीच संविधान दिवस हमें यह भरोसा दिलाता है कि देश का लोकतांत्रिक ढांचा मजबूत है और नागरिकों का सक्रिय संकल्प इसे और सुदृढ़ करता है। उन्होंने अपील की कि यह दिन हमारे भीतर संवैधानिक नैतिकता को गहराई से स्थापित करे और लोकतांत्रिक नागरिकता को मजबूत बनाए।

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