देश में मतदाता सूची सुधार (SIR) का अभियान इन दिनों भारी विवाद और चिंता का विषय बनता जा रहा है। जहां इस काम का उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध करना है, वहीं बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLO) पर काम का दबाव इतना बढ़ गया है कि कई कर्मचारी मानसिक तनाव में आकर जान गंवा रहे हैं। ताज़ा मामला गुजरात से आया है, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया।
गुजरात के शिक्षक अरविंद वाढ़ेर ने कहा— “अब मुझसे यह SIR का काम नहीं होगा”
गिर सोमनाथ जिले के कोडिनार तालुका के छारा गांव में 40 वर्षीय शिक्षक अरविंद वाढ़ेर BLO के रूप में तैनात थे।
SIR प्रक्रिया का दबाव इतना बढ़ गया कि उन्होंने शुक्रवार को आत्महत्या कर ली।
उनके सुसाइड नोट में पत्नी संगीता और बेटे कृषय के लिए भावुक संदेश था—
- “मुझे माफ करना, अब मुझसे यह SIR का काम नहीं हो पाएगा।”
- “मैं थक गया हूं, परेशान हूं… मेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा है।”
उन्होंने अपनी फाइलें स्कूल में जमा कराने की बात लिखी और साफ किया कि काम के अत्यधिक बोझ ने उन्हें अंदर से तोड़ दिया था।
यह घटना अकेली नहीं है, बल्कि देश भर में बढ़ते BLO तनाव का भयावह उदाहरण बन चुकी है।
देश के पांच राज्यों में मातम: आठ जगह BLO की मौत, कई गंभीर रूप से बीमार
चौंकाने वाली बात यह है कि SIR BLO suicide case सिर्फ गुजरात तक सीमित नहीं है।
पिछले कुछ हफ्तों में अलग-अलग राज्यों से 8 मौतों और कई बीमारियों की खबरें आई हैं—
🔴 राजस्थान
- जयपुर में एक सरकारी शिक्षक ने 16 नवंबर को आत्महत्या की।
- सवाई माधोपुर में काम के बोझ से एक BLO को हार्ट अटैक आया और उसकी मौत हो गई।
🔴 पश्चिम बंगाल
- जलपाईगुड़ी में एक BLO ने आत्महत्या की।
- पूर्व बर्धमान में काम के दबाव से एक BLO को ब्रेन स्ट्रोक हुआ, जिससे उसकी जान चली गई।
🔴 केरल (कन्नूर)
- SIR काम को लेकर भारी तनाव में एक कर्मचारी की मौत हो गई।
🔴 तमिलनाडु (कुंभकोणम)
- 60 वर्षीय महिला BLO ने काम के बोझ से परेशान होकर 44 गोलियां खाकर आत्महत्या की कोशिश की।
यह आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि देशभर में SIR BLO suicide case तेजी से चिंताजनक रूप ले रहा है।
शिक्षक संघों में गुस्सा: “इतना दबाव क्यों? क्या हम मशीन हैं?”
अरविंद वाढ़ेर की मौत के बाद गुजरात में शिक्षा जगत फट पड़ा है।
अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, गुजरात प्रांत ने घोषणा की—
- शिक्षक ऑनलाइन SIR प्रक्रिया का बहिष्कार करेंगे
- सरकार से BLO कार्य के लिए अलग कैडर बनाने की मांग की गई
- अत्यधिक तकनीकी और बोझिल काम शिक्षकों से नहीं कराया जा सकता
कई शिक्षक खुले तौर पर कह रहे हैं कि SIR के दौरान
- 1200 से ज्यादा फॉर्म बांटना
- 500 घरों का सत्यापन
- भरे हुए फॉर्म लेना
- और फिर पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन अपलोड करना
यह सब कुछ दिनों में पूरा करना बेहद मुश्किल है।
प्रश्न गंभीर: SIR का दबाव और कितनी जानें लेगा?
इतनी मौतों के बाद अब सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है—
क्या सिस्टम BLO कर्मचारियों की सीमाएं जानता भी है?
चुनावी काम ज़रूरी है, लेकिन—
- क्या यह मानव संसाधनों की कीमत पर होना चाहिए?
- क्या BLO को प्रशिक्षित करने, तकनीकी मदद देने और काम का बोझ बांटने पर सरकार ध्यान दे रही है?
- क्या चुनाव आयोग को SIR प्रक्रियाओं की समयसीमा और कार्यभार की समीक्षा करनी चाहिए?
देश भर में उठती आवाजें साफ कह रही हैं कि अब बदलाव जरूरी है।
