रायपुर, 23 नवंबर 2025।
दुनिया के सबसे गरीब और अस्थिर देशों में गिने जाने वाले अफगानिस्तान ने इस बार सुर्खियाँ युद्ध या आतंकवाद को लेकर नहीं, बल्कि अपनी मुद्रा की मजबूती के कारण बटोरी हैं। हैरानी की बात यह है कि आज अफगान अफगानी (AFN) भारतीय रुपये से ज्यादा मजबूत हो गई है।
XE.com के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार,
1 AFN = ₹1.33
यानी अफगानिस्तान में 1 लाख AFN कमाने का मतलब भारत में लगभग ₹1.33 लाख के बराबर है। ऐसे कठिन हालात वाले देश में मुद्रा का इतना मजबूत होना आम बात नहीं, लेकिन इसके पीछे दिलचस्प कहानी है।
तालिबान की कड़ी मुद्रा नीति ने बदला समीकरण
2021 में सत्ता संभालने के बाद तालिबान ने विदेशी मुद्रा के उपयोग पर कड़ा प्रतिबंध लगा दिया।
- अमेरिकी डॉलर और पाकिस्तानी रुपये पर प्रतिबंध
- अधिकांश लेनदेन केवल अफगानी में अनिवार्य
- विदेशी मुद्रा के प्रवाह पर सख्त नियंत्रण
इन कदमों से विदेशी मुद्रा की मांग घट गई और स्थानीय मुद्रा की स्थिरता बढ़ने लगी।
सीमित आयात-निर्यात ने भी दी मजबूती
अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था दुनिया से लगभग कट चुकी है।
- उद्योग नगण्य
- विदेशी निवेश लगभग शून्य
- व्यापार बहुत कम
जब किसी देश में सारी घरेलू गतिविधियाँ केवल एक मुद्रा में होती हैं, तो वह मुद्रा भले ही मजबूत न हो, पर स्थिर जरूर हो जाती है।
गरीब देश, पर मजबूत मुद्रा — एक विरोधाभास
कई अफगान नागरिकों के लिए यह स्थिति विडंबना जैसी है।
जहाँ एक ओर रोजगार के मौके कम हैं, अर्थव्यवस्था बिखरी हुई है, वहीं दूसरी ओर उनकी घरेलू मुद्रा भारतीय रुपये जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था की मुद्रा से मजबूत दिख रही है।
इस स्थिति को विशेषज्ञ “कृत्रिम स्थिरता” बताते हैं — जो ज्यादा समय तक नहीं टिकती, लेकिन फिलहाल अफगानी को मजबूती दे रही है।
भारत के लिए इसका क्या अर्थ?
आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार:
- इससे भारत की अर्थव्यवस्था पर कोई प्रत्यक्ष असर नहीं पड़ेगा।
- लेकिन यह दिखाता है कि वैश्विक मुद्राएँ केवल GDP और विकास दर से तय नहीं होतीं, बल्कि सरकारी नीतियों और बाजार में उपलब्धता से भी प्रभावित होती हैं।
