नई दिल्ली, 22 नवंबर 2025/
केंद्र सरकार द्वारा नई श्रम संहिताओं (Labour Codes) को लागू करने के फैसले ने देशभर में फिर से राजनीतिक और श्रमिक विरोध को तेज कर दिया है। शुक्रवार को देश की 10 प्रमुख ट्रेड यूनियनों ने इन श्रम संहिताओं को “धोखाधड़ी और कामगारों के साथ प्रवंचना” बताते हुए कड़ा विरोध दर्ज कराया। यूनियनों ने मांग की है कि इन नए कानूनों को तत्काल वापस लिया जाए, अन्यथा अगले बुधवार को देशभर में व्यापक विरोध प्रदर्शन होंगे।
भुवनेश्वर में सड़कों पर उतरे कामगार, श्रम संहिताओं की प्रतियाँ जलाईं
श्रम सुधारों के खिलाफ विरोध की शुरुआत शनिवार को ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से हुई, जहाँ CITU के नेतृत्व में सैकड़ों मजदूरों ने रैली निकाली और नई श्रम संहिताओं की प्रतियाँ जलाकर अपना आक्रोश व्यक्त किया।
यूनियन नेताओं का कहना है कि नई संहिताएँ श्रमिक अधिकारों को कमजोर करती हैं और उद्योगपतियों को अनुचित शक्ति देती हैं।
सरकार का दावा—नियमों से होगा सरलीकरण; यूनियनों का आरोप—कामगारों पर संकट
केंद्र सरकार ने संसद से पाँच वर्ष पहले पारित इन चार श्रम संहिताओं को अब लागू किया है।
सरकार का कहना है कि इनसे—
- कार्यस्थल सुरक्षा बढ़ेगी
- सामाजिक सुरक्षा का विस्तार होगा
- और न्यूनतम वेतन लागू करने में सुधार आएगा
हालाँकि यूनियनें आरोप लगाती रही हैं कि इन संहिताओं से कंपनियों को काम पर रखना और निकालना आसान हो जाएगा, जिससे रोजगार सुरक्षा प्रभावित होगी।
नई संहिताओं में—
- फैक्टरी शिफ्ट की अवधि बढ़ाने,
- महिलाओं के रात्रिकालीन कार्य को अनुमति देने,
- और छंटनी से पहले अनुमति की सीमा 100 से बढ़ाकर 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों तक करने
जैसे प्रावधान शामिल हैं।

पाँच वर्षों से जारी विरोध, 2024 के बाद 12 से अधिक बैठकें बेनतीजा
श्रम मंत्रालय ने 2024 के बाद यूनियनों के साथ 12 से अधिक बैठकें की हैं, लेकिन यूनियनें इन प्रावधानों को श्रमिक विरोधी बताकर वापस लेने पर अड़ी हैं।
शनिवार शाम तक मंत्रालय ने यूनियनों की मांगों पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी।
उद्योग जगत भी पूरी तरह एकमत नहीं
जहाँ सरकार और कुछ उद्योग समूह श्रम संहिताओं को निवेश और उद्योग विकास के लिए “अनिवार्य सुधार” बताते हैं, वहीं एसोसिएशन ऑफ इंडियन एंटरप्रेन्योर्स ने चिंता जताई है कि—
- इन नियमों से छोटे और मध्यम उद्यमों पर परिचालन लागत बढ़ेगी
- व्यावसायिक निरंतरता प्रभावित हो सकती है
इस संगठन ने सरकार से लचीला क्रियान्वयन और संक्रमणकालीन सहयोग देने की मांग की है।
BMS का समर्थन, राज्यों से जल्द लागू करने की अपील
सभी यूनियनें विरोध में नहीं हैं। बीजेपी समर्थित भारतीय मजदूर संघ (BMS) ने कहा है कि संहिताओं को राज्यों में व्यापक चर्चा के बाद लागू किया जाए।
केंद्र ने राज्यों को वेतन, सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक संबंध और कार्यस्थल सुरक्षा से जुड़े नियम तैयार करने को कहा है।
आने वाले दिनों में देशभर में बड़ा श्रमिक आंदोलन की संभावना
यूनियनों का कहना है कि सरकार ने यदि उनकी मांग नहीं मानी तो वे इसे ऐतिहासिक स्तर के राष्ट्रीय आंदोलन में बदल देंगी।
कामगारों का आरोप है कि नई श्रम संहिताएँ उद्योगों के पक्ष में झुकी हुई हैं और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा नहीं करतीं।
