राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: गवर्नर और राष्ट्रपति पर समयसीमा थोपना असंवैधानिक, ‘डिम्ड असेंट’ को किया खारिज

भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा अनुच्छेद 143 के तहत भेजे गए ऐतिहासिक संदर्भ पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (20 नवंबर) को बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गवर्नर और राष्ट्रपति को बिलों पर निर्णय देने के लिए अदालत कोई तय समयसीमा नहीं दे सकती।

इस Supreme Court deemed assent case में कोर्ट ने कहा कि यदि अदालत समयसीमा पार होने पर “डिम्ड असेंट” घोषित करने लगे, तो यह संविधान की आत्मा और सेपरेशन ऑफ पावर के सिद्धांत के खिलाफ होगा।


“डिम्ड असेंट” न्यायपालिका द्वारा कार्यकारी शक्तियों का अधिग्रहण—कोर्ट

मुख्य न्यायाधीश BR गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पीएस नरसिम्हा और एएस चंदुरकर की पाँच-न्यायाधीशीय पीठ ने कहा—

“डिम्ड असेंट की अवधारणा कार्यपालिका की शक्तियों पर न्यायपालिका का अधिग्रहण है, जो हमारे लिखित संविधान में स्वीकार्य नहीं है।”

हालांकि, कोर्ट ने यह भी साफ किया कि यदि किसी गवर्नर द्वारा लंबा या बिना कारण विलंब किया जाता है, जिससे विधायी प्रक्रिया बाधित होती है, तो अदालत सीमित न्यायिक समीक्षा के तहत गवर्नर को निर्णय लेने का निर्देश दे सकती है — लेकिन बिल के मेरिट पर टिप्पणी किए बिना।


राष्ट्रपति के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के सामने 14 सवाल रखे गए थे

10 दिनों की लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 14 प्रश्नों पर विस्तृत राय दी। इनमें सबसे महत्वपूर्ण सवाल था—गवर्नर बिल प्रस्तुत होने पर कौन-कौन से विकल्प अपना सकता है?


गवर्नर के पास तीन विकल्प, लेकिन ‘विधेयक रोककर बैठे रहना’ विकल्प नहीं: कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 200 के तहत गवर्नर के पास तीन ही विकल्प हैं—

  1. बिल को मंजूरी देना (Assent)।
  2. मंजूरी रोकना, लेकिन बिल वापस विधानसभा को लौटाना अनिवार्य होगा।
  3. बिल को राष्ट्रपति के पास आरक्षण हेतु भेजना (Reserve for President)।

कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस दलील को खारिज किया कि गवर्नर बिल को बिना लौटाए अनिश्चित समय तक रोके रख सकता है।

इस निर्णय को संघीय ढांचे को मजबूत करने वाली टिप्पणी माना जा रहा है।


गवर्नर आमतौर पर मंत्रिपरिषद की सलाह से चलते हैं, लेकिन अनुच्छेद 200 में विवेकाधिकार

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सामान्यतः गवर्नर मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करते हैं।
लेकिन अनुच्छेद 200 में उन्हें सीमित विवेकाधिकार प्राप्त है, क्योंकि दूसरी प्रोविज़ो में “in his opinion” शब्दों का उपयोग हुआ है।

इस विवेक का उपयोग गवर्नर या तो—

  • बिल वापस भेजने में, या
  • राष्ट्रपति के पास भेजने में कर सकते हैं।

तमिलनाडु मामले के बाद आया यह बड़ा संवैधानिक स्पष्टीकरण

मई 2025 में राष्ट्रपति ने यह संदर्भ भेजा था, जब तमिलनाडु गवर्नर केस में दो-न्यायाधीशीय पीठ ने गवर्नर–राष्ट्रपति के लिए समयसीमा तय की थी।

सुप्रीम कोर्ट का यह नया फैसला उस स्थिति को स्पष्ट करता है और “डिम्ड असेंट” की अवधारणा को असंवैधानिक बताता है।

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