रायपुर:
छत्तीसगढ़ में धान खरीदी सीजन शुरू होने से ठीक पहले सहकारी समितियों के हड़ताली कर्मचारियों पर सरकार ने कड़ा रुख अपना लिया है। चार सूत्रीय मांगों को लेकर 3 नवंबर से जारी हड़ताल के बीच, सरकार ने अब कर्मचारियों को अंतिम चेतावनी देते हुए स्पष्ट कर दिया है कि वे शनिवार और रविवार तक काम पर लौट आएं, अन्यथा सोमवार से कड़ी कार्रवाई शुरू की जाएगी।
ESMA लागू, तत्काल ड्यूटी ज्वाइन करने के निर्देश
रायपुर में हड़ताल जारी रखने वाले कंप्यूटर ऑपरेटरों और कर्मचारियों पर सरकार ने एस्मा (ESMA) लागू कर दिया है। प्रशासन का कहना है कि बातचीत और कई नोटिस देने के बावजूद कर्मचारी काम पर नहीं लौटे, इसलिए मजबूरन सख्त कदम उठाने पड़े।
सूत्रों के मुताबिक, धान खरीदी कार्य का बहिष्कार करने वाले कर्मचारियों पर अब गिरफ्तारी से लेकर निलंबन तक की कार्रवाई संभव है।
“रविवार तक लौटें, नहीं तो सख्त कार्रवाई”—सहकारिता विभाग की अंतिम अपील
सहकारिता विभाग ने भावनात्मक लेकिन दृढ़ अपील करते हुए कहा है कि यह निर्णय किसानों के हित को ध्यान में रखकर लिया गया है। विभाग ने कहा—
“शनिवार और रविवार अंतिम अवसर हैं। यदि कर्मचारी काम पर नहीं लौटते, तो सोमवार से कार्रवाई अनिवार्य होगी।”
धान खरीदी की तैयारी पूरी, 15 नवंबर से खरीदी शुरू
सरकार ने दावा किया है कि धान खरीदी की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
- 2058 पैक्स समितियां तैयार
- 2739 उपार्जन केंद्र सक्रिय
- नोडल अधिकारियों की नियुक्ति
- कंप्यूटर ऑपरेटरों की तैनाती
खरीफ विपणन वर्ष 2025-26 के लिए धान खरीदी 15 नवंबर से शुरू होगी। सरकार का कहना है कि किसानों को किसी तरह की परेशानी न हो, इसलिए बैकअप व्यवस्था पहले ही सक्रिय कर दी गई है।
“कार्रवाई टाली जा सकती है, बस काम पर लौट आएं”—सीआर प्रसन्ना
सहकारिता विभाग के सचिव सीआर प्रसन्ना ने कहा कि प्रशासन चाहता है कि कर्मचारी सम्मान के साथ वापस लौटें। उन्होंने कहा—
“कर्मचारी अब भी वापस आ सकते हैं। लेकिन धान खरीदी का बहिष्कार करने पर सख्त कार्रवाई तय है। किसानों का हित सर्वोच्च है।”
हड़ताल और धान खरीदी—दोनों के बीच फंसा किसान
गांवों में किसानों की बेचैनी बढ़ चुकी है। हर वर्ष की तरह वे उम्मीद करते हैं कि खरीदी सुचारू रूप से शुरू हो जाए, ताकि उन्हें अपनी मेहनत की सही कीमत मिल सके। ऐसे में हड़ताल और प्रशासन दोनों की नजरें सोमवार से पहले के हालात पर टिकी हुई हैं।
यह मामला केवल प्रशासनिक सख्ती का नहीं, बल्कि हजारों किसानों की उम्मीदों और कर्मचारियों की मांगों के बीच संतुलन का भी है।
