बीजापुर:
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जेल परिसर में शुक्रवार का दिन भावनाओं से भरा रहा। वर्षों तक हिंसा और डर के साए में जीने वाले परिवार उस समय रो पड़े, जब सुधरे हुए पूर्व माओवादी कैडर अपने उन परिजनों से मिले जो फिलहाल नक्सल मामलों में जेल में बंद हैं। यह विशेष मुलाकात राज्य सरकार की माओवादी पुनर्वास नीति के तहत आयोजित की गई, जिसमें मानवीय संवेदनाओं को प्राथमिकता दी गई।
हिंसा छोड़ने की भावुक अपील
आंखों में आंसू, हाथों में कसकर थामे अपनापन और वर्षों बाद मिले रिश्तों की गर्माहट… यह दृश्य उन माओवादियों के मन में भी हलचल पैदा कर गया जो अब भी जेल में हैं। सुधरे हुए कैडरों ने अपने परिजनों से साफ शब्दों में कहा—
“हम बदल चुके हैं… अब तुम भी हथियार छोड़कर घर लौट आओ।”
संतू वेक्को, मारो वेक्को, रamlal वेक्को, संतोष कुंजाम, बदरू ओयाम, मस्सा तामो, लक्ष्मण ओयाम, मैनू अरकी, राजेश वेट्टी और कुमारी अरकी जैसे कई पुनर्वासित युवा पहली बार अपने परिजनों से खुले दिल से मिले। दूसरी ओर, जेल में बंद अर्जुन वेक्को, मनी ओयाम, भीमसेन ओयाम, भीमा मुचाकी, सायको मदवी, सोमारू मदकम, बुधरू अरकी और शंकर कोर्सा अपनी भावनाएं रोक नहीं पाए।
एक भाई ने अपने छोटे भाई को सीने से लगाया, एक भाभी ने रोते हुए अपने देवर के सिर पर हाथ फेरा और एक मामा ने वर्षों बाद अपने भांजों को पहचानते हुए आंसू पोंछे—जेल का कठोर माहौल एक पल को परिवारिक स्नेह में बदल गया।
सरकार का संवेदनशील प्रयास
उपमुख्यमंत्री व गृह मंत्री विजय शर्मा पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि राज्य सरकार उन माओवादियों को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रतिबद्ध है, जो लौटना चाहते हैं। उन्होंने कहा—
“हम चाहते हैं कि जेल में बंद माओवादी हिंसा छोड़कर पुनर्वास को अपनाएं। कोर्ट प्रक्रिया के तहत जमानत और केस वापसी जैसी संभावनाओं पर भी विचार किया जा रहा है।”
सरकार ने करीब 240 ऐसे कैडरों की पहचान कर ली है जो आत्मसमर्पण और पुनर्वास चाहते हैं। अपराध की प्रकृति के अनुसार उनकी श्रेणीकरण प्रक्रिया जारी है।
समाज में लौटने का रास्ता
शर्मा ने बताया कि सिर्फ सरकारी प्रयास ही नहीं, बल्कि surrendered कैडर और गांवों के लोग भी सक्रिय रूप से अपने परिजनों को समझा रहे हैं। यह पहल नक्सल प्रभावित इलाकों में विश्वास, शांति और विकास की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
सुधरे हुए कैडरों ने अपने परिजनों से कहा—
“भूपति नेता ने भी हथियार छोड़ दिए हैं… यह संकेत है कि अब तुम्हें भी लौट आना चाहिए। समाज तुम्हें अपनाने के लिए तैयार है।”
वापसी की उम्मीदें और एक नई शुरुआत
बीजापुर जेल में हुआ यह पुनर्मिलन सिर्फ चेहरों का मिलना नहीं था, बल्कि दिलों का जुड़ना था। वर्षों से बिछड़े परिवारों के लिए यह मुलाकात एक नई शुरुआत का वादा लेकर आई—
उम्मीद की, भरोसे की, और शांतिपूर्ण जीवन की।
