बलरामपुर (छत्तीसगढ़): बलरामपुर जिले में पुलिस हिरासत में 19 वर्षीय युवक की मौत के बाद सोमवार को हालात तनावपूर्ण हो गए। मृतक के परिवार ने आरोप लगाया कि पुलिस की पिटाई से युवक की मौत हुई है। परिजनों ने बलरामपुर जिला अस्पताल के बाहर विरोध प्रदर्शन करते हुए कड़ी कार्रवाई और एक करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की।
⚖️ न्यायिक जांच के आदेश, चार पुलिसकर्मी लाइन अटैच
मामले की गंभीरता को देखते हुए सरगुजा आईजी दीपक झा ने तुरंत कार्रवाई करते हुए चार पुलिसकर्मियों — निरीक्षक हिम्मत सिंह शेखावत, एसआई राधेश्याम विश्वकर्मा, कॉन्स्टेबल आकाश तिवारी और माधुरी कुजूर — को लाइन अटैच कर दिया।
बलरामपुर के एडिशनल एसपी विश्व दीपक त्रिपाठी ने बताया कि घटना की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए गए हैं। पोस्टमार्टम और जांच रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
💍 50 लाख की जूलरी चोरी का केस, नौ आरोपी गिरफ्तार
पुलिस के अनुसार, मृतक उमेश सिंह (19), निवासी नकना गांव (सीतापुर थाना क्षेत्र), को बलरामपुर के चांदो रोड स्थित एक जूलरी शॉप में हुई चोरी के मामले में गिरफ्तार किया गया था।
यह चोरी 30-31 अक्टूबर की रात को हुई थी और इसमें करीब 50 लाख रुपये के गहने चोरी हुए थे। इस केस में अब तक 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने चोरी का माल खरीदा था।
🏥 पुलिस का दावा—बीमारी से मौत, परिवार का आरोप—पिटाई से मौत
पुलिस का कहना है कि उमेश सिंह सिकलसेल बीमारी से पीड़ित था और पिछले एक साल में दस बार अस्पताल में भर्ती हो चुका था।
पुलिस के मुताबिक, रविवार सुबह उसकी तबीयत बिगड़ गई, जिसके बाद उसे जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
वहीं, परिवार का दावा है कि पुलिस ने उमेश को 7 नवंबर को पकड़ा था और दो दिनों तक बेरहमी से पिटाई की, जिससे उसकी मौत हो गई। परिजनों ने कहा कि वे न्यायिक जांच से संतुष्ट नहीं हैं और निष्पक्ष कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
🚨 आदतन अपराधी का रिकॉर्ड, फिर भी सवाल बरकरार
पुलिस के अनुसार, उमेश सिंह और उसके पिता हीरू उर्फ फेकू सिंह दोनों आदतन अपराधी हैं और उन पर चोरी व सेंधमारी के कई मामले दर्ज हैं।
फिर भी, सवाल यह है कि पुलिस हिरासत में रहते हुए एक आरोपी की मौत कैसे हो गई और क्या वाकई उसकी तबीयत खराब थी या पुलिस की पिटाई से मौत हुई — इस पर अब न्यायिक जांच से ही सच्चाई सामने आएगी।
🧾 मानवता और कानून दोनों की परीक्षा
यह मामला सिर्फ एक मौत का नहीं बल्कि पुलिस व्यवस्था और मानवाधिकारों की परीक्षा भी है।
ऐसे मामलों में पारदर्शी जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई ही पुलिस की साख को बचा सकती है।
