मुस्लिम और ईसाई भी संघ में आ सकते हैं, लेकिन शर्त के साथ — मोहन भागवत

नई दिल्ली, 10 नवम्बर 2025:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को यह स्पष्ट किया कि मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लोग भी संघ में शामिल हो सकते हैं, लेकिन एक शर्त के साथ। उन्होंने कहा कि संघ में आने वाला हर व्यक्ति खुद को भारत माता का पुत्र और हिंदू समाज का सदस्य माने — यही संघ की मूल भावना है।


🔹 “संघ में सभी के लिए द्वार खुले हैं, पर अलगाव नहीं चलेगा”

मोहन भागवत नई दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला “100 इयर्स ऑफ संग जर्नी: न्यू होराइजन्स” में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा —

“कोई ब्राह्मण, कोई जाति, कोई मुस्लिम या ईसाई अलग पहचान लेकर संघ में नहीं आता। जब कोई संघ की शाखा में आता है, तो वह भारत माता का पुत्र और हिंदू समाज का सदस्य बनकर आता है।”

उन्होंने आगे कहा कि संघ की शाखाओं में मुस्लिम और ईसाई भी आते हैं, लेकिन वहां किसी से उसकी पहचान नहीं पूछी जाती।

“हम किसी की गिनती नहीं करते, न ही यह पूछते हैं कि कौन किस धर्म का है। हम सब भारत माता के पुत्र हैं, यही संघ का तरीका है,” उन्होंने कहा।


🔹 “संघ का उद्देश्य है समाज को जोड़ना, बांटना नहीं”

भागवत ने बताया कि संघ की विचारधारा एकता और समरसता पर आधारित है। उनका कहना था कि संघ का उद्देश्य समाज को धर्म या जाति के आधार पर नहीं, बल्कि राष्ट्र और संस्कृति की एकता के माध्यम से जोड़ना है।

“संघ का काम है — समाज को संगठित करना, सशक्त बनाना और ऐसा भारत बनाना जो दुनिया को धर्म, शांति और सुख की दिशा दिखा सके,” उन्होंने कहा।


🔹 “संघ कानूनी और मान्यता प्राप्त संगठन है”

भागवत ने इस अवसर पर संघ की कानूनी स्थिति पर भी बात की। उन्होंने कहा —

“संघ की शुरुआत 1925 में हुई थी। क्या आप उम्मीद करते हैं कि हम ब्रिटिश सरकार से पंजीकरण करवाते? जिनके खिलाफ हम संघर्ष कर रहे थे?”

उन्होंने बताया कि संघ पर अब तक तीन बार प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन हर बार न्यायालय ने प्रतिबंध को असंवैधानिक ठहराया और संघ को पुनः मान्यता दी।

“अगर संघ नहीं होता, तो सरकार उसे बैन क्यों करती?” उन्होंने कहा।


🔹 “संघ का लक्ष्य है समृद्ध और शक्तिशाली भारत”

अपने संबोधन के अंत में मोहन भागवत ने कहा कि संघ का मुख्य लक्ष्य भारत को एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र बनाना है, जो पूरी दुनिया के लिए मार्गदर्शक बने।
उन्होंने कहा —

“संघ का प्रयास है कि हिंदू समाज को संगठित कर ऐसा भारत बनाया जाए जो धर्म और मानवता के सिद्धांतों से पूरी दुनिया को दिशा दे सके।”


🟢 निष्कर्ष:

मोहन भागवत के इस बयान से संघ की समावेशी और एकता पर आधारित दृष्टि एक बार फिर चर्चा में आ गई है। उनका कहना है कि संघ धर्म या पहचान के बजाय राष्ट्रीय भावना और सांस्कृतिक एकता पर आधारित संगठन है, जिसमें हर भारतीय के लिए स्थान है — चाहे वह किसी भी समुदाय से हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *