बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में हुए भीषण Bilaspur train accident ने कई परिवारों की दुनिया उजाड़ दी है। अस्पतालों और मोर्चरी के बाहर करुणा और मातम के दृश्य दिल को दहला देने वाले हैं।
इसी भीड़ के बीच एक किशोर योगेश्वर अपनी बेहोश मां राधिका को उठाकर सीढ़ियों पर लिटाता है। राधिका की सांसें तेज चल रही हैं, आंखों से आंसू बह रहे हैं। अस्पताल की नर्सें पानी पिलाने आती हैं। कुछ ही देर पहले उन्हें पता चला था कि उनकी मां गोडावरी अब इस दुनिया में नहीं रहीं।
राधिका के पति झाड़ूराम बताते हैं, “हमने राधिका को सिर्फ उसकी मौसी गोटीबाई की मौत की खबर दी थी। लेकिन जैसे ही पोस्टमार्टम सेंटर पहुंचे, एक अधिकारी ने गलती से मां का नाम भी पढ़ दिया। बस, राधिका वहीँ बेहोश होकर गिर पड़ी।”
गोडावरी और गोटीबाई (उम्र लगभग 60 वर्ष) उन 11 लोगों में थीं, जिनकी मौत मंगलवार को हुई जब एक यात्री ट्रेन बिलासपुर स्टेशन की ओर जा रही थी और एक खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई। इस टक्कर ने दर्जनों परिवारों को तबाह कर दिया।
“कोच के अंदर खून ही खून था”
हादसे की भयावहता को बताते हुए मथुराबाई कहती हैं, “हम पहला कोच में बैठे थे। अचानक जोरदार झटका लगा, लोग एक-दूसरे पर गिर पड़े। चीखें, रोना-धोना सब कुछ एक साथ था।”
मथुराबाई का बेटा सत्येंद्र (17) दरवाजे के पास बैठा था और किसी तरह 10 फीट ऊंचाई से कूदकर बाहर निकला। “मैंने जैसे-तैसे अपनी जान बचाई, लेकिन मेरे माता-पिता को अंदर से लोगों ने खींचकर निकाला,” वह बताता है।
परिवार के सभी सदस्य CIMS अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। मथुराबाई कहती हैं, “मुझे लगा मेरा बेटा ट्रेन के नीचे आ गया होगा। लेकिन जब उसे जिंदा देखा, तो भगवान का शुक्र अदा किया।”
जिंदगियां थम गईं, आंसू नहीं
बिलासपुर के अस्पतालों में हर कोने से सिर्फ एक ही बात सुनाई दे रही है — “ऐसा हादसा किसी के साथ न हो।” राधिका, योगेश्वर और अनगिनत परिवार अब उस एक पल की त्रासदी से उबरने की कोशिश में हैं, जिसने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी।
