Chhattisgarh Politics: कांग्रेस में फिर उठा अंदरूनी कलह का मुद्दा, बृहस्पति सिंह के बयान से मचा सियासी भूचाल

रायपुर। Chhattisgarh Congress internal conflict एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। रामानुजगंज के पूर्व विधायक बृहस्पति सिंह ने एक साक्षात्कार में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि “छत्तीसगढ़ में कांग्रेस कभी भाजपा से नहीं हारती, बल्कि खुद की अंदरूनी लड़ाई से हार जाती है।”

उन्होंने कहा कि पार्टी में ‘निपटो-निपटाओ’ का खेल चल रहा है, जिससे कांग्रेस की ताकत कमजोर हो रही है। सिंह के इस बयान ने पार्टी के भीतर हलचल मचा दी है और एक बार फिर गुटबाजी की चर्चा तेज हो गई है।

राहुल गांधी से बैठक का जिक्र, सिंहदेव पर तंज
बृहस्पति सिंह ने बताया कि दिल्ली में राहुल गांधी से हुई मुलाकात के दौरान राहुल ने पूछा था कि “छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार क्यों नहीं बन पा रही?” इस पर सिंह ने जवाब दिया, “वरिष्ठ नेताओं को ठीक कर दीजिए, बाकी सब ठीक हो जाएगा।”

उन्होंने कहा कि कांग्रेस के पास जनता का समर्थन है, लेकिन एक ही मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए बड़े नेताओं में आपसी खींचतान जारी है। सिंह ने पूर्व उपमुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव पर भी तंज कसते हुए कहा कि “सिंहदेव बहुत अच्छे नेता हैं, लेकिन उनकी सोच सरगुजा से बाहर नहीं निकल पाई है।”

बैज का पलटवार: कांग्रेस एक परिवार की तरह एकजुट
सिंह के इस बयान पर पीसीसी चीफ दीपक बैज ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “टी.एस. सिंहदेव हमारे वरिष्ठ नेता हैं, जो पूरे छत्तीसगढ़ के लिए सोचते हैं। पार्टी में कहीं भी ‘निपटो-निपटाओ’ जैसी स्थिति नहीं है। किसी मुद्दे पर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन यह परिवार के भीतर की बात है।”

उन्होंने कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे ऐसी बयानबाजी से बचें और एकजुट होकर अगले चुनाव की तैयारी करें।

राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि बृहस्पति सिंह का यह बयान कांग्रेस की पुरानी खींचतान को फिर से उजागर करता है। 2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद पार्टी को आत्ममंथन की जरूरत थी, लेकिन अब भी भीतर की खींचतान खत्म नहीं हो पाई है।

विशेषज्ञों के अनुसार, अगर कांग्रेस ने एकजुटता नहीं दिखाई, तो 2028 के चुनावों में वापसी और मुश्किल हो सकती है।

जनता चाहती है स्थिरता, न कि कलह
राज्य में आम जनता अब स्थिर सरकार और मजबूत नेतृत्व चाहती है। कांग्रेस के अंदरूनी विवादों से कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा है, जबकि भाजपा लगातार अपनी रणनीति मजबूत कर रही है।
अब देखना यह है कि कांग्रेस इस विवाद से सबक लेकर एकजुट होती है या फिर आंतरिक जंग और तेज होती है।

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