नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण कम करने के लिए किए गए क्लाउड सीडिंग प्रयोग पर अब राजनीति तेज हो गई है। आम आदमी पार्टी (AAP) ने बुधवार को भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार से सवाल किया कि जब बारिश हुई ही नहीं, तो टैक्सदाताओं का पैसा आखिर क्यों खर्च किया गया?
दिल्ली के AAP प्रमुख सौरभ भारद्वाज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “पिछले कुछ दिनों से कहा जा रहा है कि दिल्ली के कई इलाकों में क्लाउड सीडिंग की गई, लेकिन कहीं भी बारिश नहीं हुई। यह जनता के पैसे पर किया गया एक ‘तमाशा’ है।”
🌧️ क्या है क्लाउड सीडिंग?
क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस या नमक जैसे रासायनिक तत्वों का उपयोग कर बादलों में नमी को बढ़ाया जाता है ताकि कृत्रिम बारिश की जा सके।
दिल्ली में मंगलवार को दो ट्रायल किए गए — एक दोपहर 12:13 बजे बुराड़ी क्षेत्र में, और दूसरा 3:45 बजे मयूर विहार व करोल बाग में। लेकिन किसी भी इलाके में बारिश नहीं हुई।
🏛️ BJP सरकार पर AAP का आरोप
भारद्वाज ने कहा, “जब केंद्र सरकार की तीन एजेंसियों — IMD, CAQM और CPCB — ने पहले ही क्लाउड सीडिंग की सीमाओं पर अपनी राय दे दी थी, तो फिर बीजेपी सरकार ने यह ‘सर्कस’ क्यों किया?”
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार वैज्ञानिक तथ्यों की अनदेखी कर सिर्फ प्रचार के लिए प्रयोग कर रही है।
🧠 वैज्ञानिकों की राय
IIT कानपुर के निदेशक मनीन्द्र अग्रवाल ने बताया कि उस दिन बादलों में नमी बहुत कम थी, इसलिए बारिश की संभावना भी बेहद कम थी। हालांकि उन्होंने कहा कि 15 मॉनिटरिंग स्टेशनों के डेटा में PM2.5 और PM10 स्तर में 6-10% तक कमी देखी गई।
अग्रवाल ने कहा, “भले ही बारिश नहीं हुई, लेकिन थोड़ी नमी में भी क्लाउड सीडिंग से वायु गुणवत्ता पर हल्का प्रभाव देखा गया है।”
🌫️ विशेषज्ञों की चेतावनी
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि क्लाउड सीडिंग महंगा, सीमित प्रभाव वाला और मौसम पर निर्भर प्रयोग है।
वे बताते हैं कि दिल्ली की ठंडी और शुष्क सर्दियों में आवश्यक बादल परिस्थितियां आमतौर पर नहीं बनतीं। ऐसे में बारिश की संभावना बेहद कम रहती है और अगर होती भी है तो वह अस्थायी राहत देती है।
🌍 प्रदूषण नियंत्रण की चुनौती जारी
दिल्ली की वायु गुणवत्ता अभी भी “खराब” श्रेणी में बनी हुई है।
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि, “क्लाउड सीडिंग दिल्ली के लिए एक आवश्यकता है, ताकि प्रदूषण से राहत मिल सके।”
हालांकि विपक्ष का कहना है कि नीति से ज्यादा दिखावे पर ध्यान दिया जा रहा है, जबकि ज़रूरत दीर्घकालिक समाधानों की है जैसे सार्वजनिक परिवहन सुधार, हरित आवरण बढ़ाना और औद्योगिक उत्सर्जन नियंत्रण।
