नई दिल्ली/बस्तर:
कभी माओवाद की दहशत में जीने वाला Badesetti अब first Maoist-free village बनकर उभरा है। बस्तर के इस दूरस्थ गांव ने अब राज्य के इतिहास में एक नई कहानी लिखी है — डर और हिंसा से विकास और आत्मनिर्भरता की ओर।
सरकार की माओवादी पुनर्वास नीति (Maoist Rehabilitation Policy) के तहत पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास विभाग ने गांव के लिए ₹1.10 करोड़ की राशि स्वीकृत की है। यह धनराशि सड़क, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य और शासन की पुनर्स्थापना जैसे बुनियादी ढांचों के सुधार में उपयोग की जा रही है।
आज वही बडेसट्टी, जहां कभी शाम ढलते ही सन्नाटा छा जाता था, अब डिजिटल इंडिया की राह पर अग्रसर है। गांववासी अब UPI से डिजिटल लेनदेन कर रहे हैं, बैंक खाते दोबारा सक्रिय हो चुके हैं, और पंचायत बैठकों में ग्रामीण बड़ी संख्या में भाग ले रहे हैं।
स्थानीय निवासी ने बताया —
“पहले यहां काम अधूरा रहता था, लेकिन अब सड़कों से लेकर बिजली तक सब ठीक हो गया है। बस सेवाएं शुरू हो गई हैं, हर घर में बिजली पहुंच गई है और नया कंक्रीट रोड गांव को आसपास के इलाकों से जोड़ता है। विकास अब साफ दिख रहा है।”
आंगनबाड़ी केंद्र, जो तीन साल से बंद था, अब फिर से शुरू हो गया है। बच्चों को पोषण और प्रारंभिक शिक्षा मिल रही है। प्रधानमंत्री जल जीवन मिशन से गांव को शुद्ध पेयजल मिला है, वहीं सोलर लाइटिंग प्रोजेक्ट से हर गली में रोशनी लौट आई है।
गांव में पंचायत भवन और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण कार्य भी तेजी से चल रहा है। वहीं प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से बडेसट्टी अब पूरी तरह जुड़ चुका है।
एक अन्य ग्रामीण ने कहा —
“पहले हमारा इलाका पूरी तरह माओवादियों के नियंत्रण में था, लेकिन अब पूरी तरह शांति है। अब न कोई डर है, न कोई बंदूक की आवाज। यह अब शांति और विकास का गांव बन गया है।”
स्थानीय प्रशासन का कहना है कि बडेसट्टी की यह सफलता कहानी उन अन्य गांवों के लिए प्रेरणा बनेगी, जो अब भी नक्सल प्रभाव के अवशेषों से जूझ रहे हैं। अधिकारियों के अनुसार, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में निरंतर निवेश से यह शांति स्थायी होगी।
डर से आज़ादी तक, और अंधेरे से विकास तक — बडेसट्टी आज एक नए आत्मनिर्भर बस्तर का प्रतीक बन चुका है।
