भारतीय विज्ञापन जगत के महानायक पियूष पांडे का 70 वर्ष की उम्र में निधन, ‘कुह खास है’ और ‘फेवीकोल’ जैसे अभियानों से रचा इतिहास

नई दिल्ली। भारतीय विज्ञापन जगत के दिग्गज और रचनात्मकता के प्रतीक पियूष पांडे का गुरुवार को 70 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने भारतीय विज्ञापन को वह आवाज़ और आत्मा दी, जिसने आम लोगों के दिलों तक इसे पहुंचाया।

पियूष पांडे ने अपने जीवन के चार दशक ओगिल्वी इंडिया (Ogilvy India) को समर्पित किए। उनके नेतृत्व में इस एजेंसी ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी रचनात्मक उत्कृष्टता की नई मिसालें कायम कीं।


🎨 विज्ञापन जगत के कहानीकार

पियूष पांडे का सफर जितना प्रेरणादायक था, उतना ही असामान्य भी। कभी क्रिकेटर, चाय चखने वाले (Tea Taster) और कंस्ट्रक्शन वर्कर रह चुके पांडे ने 1982 में ओगिल्वी से अपने विज्ञापन करियर की शुरुआत की।

उनके अभियानों — एशियन पेंट्स का “हर खुशी में रंग लाए”, कैडबरी का “कुछ खास है”, फेवीकोल के मज़ेदार विज्ञापन, और हच का “व्हेरेवर यू गो” — ने भारतीय विज्ञापन को संवेदनशीलता और हास्य का नया आयाम दिया।


🗣️ हिंदी को दी मुख्यधारा में जगह

पियूष पांडे का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने हिंदी और भारतीय बोलचाल की भाषा को विज्ञापन के केंद्र में लाया। उन्होंने एक बार कहा था —

“लोग आपके विज्ञापन को देखकर यह नहीं कहेंगे कि कैसे बनाया, बल्कि यह कहेंगे कि उन्हें यह पसंद आया।”

उनकी सोच ने भारतीय ब्रांडिंग को सिर्फ ‘उत्पाद बेचने’ से आगे बढ़ाकर भावनाओं से जोड़ने की कला में बदल दिया।


🌍 वैश्विक मंच पर भारत की पहचान

2018 में पियूष पांडे और उनके भाई प्रसून पांडे को Cannes Lions International Festival of Creativity में Lion of St. Mark Award से सम्मानित किया गया। यह सम्मान पाने वाले वे पहले एशियाई रचनाकार बने — जो भारतीय विज्ञापन की रचनात्मकता का वैश्विक स्वीकार था।

उन्होंने राजनीति से लेकर उपभोक्ता ब्रांड्स तक, हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी। उनका बनाया नारा “अब की बार, मोदी सरकार” भारतीय चुनावी इतिहास का एक प्रतीक बन गया।


❤️ विरासत जो हमेशा जिंदा रहेगी

2023 में जब उन्होंने ओगिल्वी इंडिया के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन पद से हटकर एडवाइजरी भूमिका संभाली, तब उन्होंने कहा था —

“सबसे अच्छे विचार सड़क से, जीवन से, और लोगों को सुनने से आते हैं।”

उनकी यह सोच आज भी हर युवा विज्ञापनकर्मी को प्रेरित करती है।


पियूष पांडे केवल विज्ञापन के विशेषज्ञ नहीं थे, वे भारत की आत्मा को शब्दों और छवियों में गढ़ने वाले कहानीकार थे। उनके बनाए विज्ञापन सिर्फ उत्पाद नहीं बेचते थे — वे लोगों की मुस्कान, भावनाएं और यादें बन गए।

भारतीय विज्ञापन अब उनके बिना शायद उतना रंगीन न रहे, लेकिन Piyush Pandey passes away जैसी खबर के बावजूद उनकी रचनात्मक विरासत आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करती रहेगी।

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