Roshni Singh Para Art Chhattisgarh Raipur: छत्तीसगढ़ की धरती सृजन और संस्कृति से समृद्ध है। यहां के कलाकार अपनी मिट्टी, परंपरा और प्रकृति से प्रेरणा लेकर ऐसी कला गढ़ते हैं, जो न सिर्फ मन मोह लेती है बल्कि राज्य की पहचान भी बनती है। जांजगीर जिले की युवा कलाकार रोशनी सिंह ने धान के पैरा से ऐसी ही अनोखी कला रची है, जिसने स्थानीय ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश का ध्यान खींचा है।
🌾 धान के पैरा से रची कला की दुनिया
रोशनी सिंह बताती हैं कि उन्होंने “पैरा आर्ट” को केवल एक शौक के रूप में नहीं, बल्कि अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में अपनाया। वे धान के पैरा से डॉ. भीमराव अंबेडकर, महात्मा गांधी, भगवान बुद्ध और गणेशजी की तस्वीरें इस तरह बनाती हैं कि मानो ये कलाकृतियां जीवंत हो उठती हैं।
उन्होंने इस कला का प्रशिक्षण हस्तशिल्प विभाग द्वारा आयोजित तीन माह के प्रशिक्षण शिविर से लिया। यही से शुरू हुआ उनका सफर, जो अब गांव से लेकर शहर तक उनकी पहचान बन चुका है।
🎨 रंग, धैर्य और कल्पना का संगम
रोशनी बताती हैं कि धान का पैरा तीन रंगों में मिलता है — हल्का सुनहरा, गहरा भूरा और क्रीम। इन रंगों को पहले अलग-अलग छांटकर सूखाया जाता है, फिर ड्राइंग बनाकर पैरा को बारीकी से सजाया जाता है। यह प्रक्रिया समय और धैर्य की मांग करती है।
एक साधारण पैरा आर्ट की कीमत ₹150 से ₹5000 तक होती है, जबकि फ्रेम वाली कलाकृतियां ₹1200 में बिकती हैं। हाल ही में उन्होंने बस्तर थीम पर एक विशेष कलाकृति बनाई, जिसमें 3 से 4 दिनों की मेहनत लगी।

🏆 मेला और प्रदर्शनी में मिली पहचान
धीरे-धीरे रोशनी की कला को पहचान मिलने लगी। उन्हें मेला, प्रदर्शनी और शासकीय कार्यक्रमों में लगातार मंच मिल रहा है। प्रशासन और हस्तशिल्प विभाग की मदद से उन्होंने अपने पैरा आर्ट की प्रदर्शनी कोंडागांव, बस्तर, रायगढ़, दुर्ग, भिलाई, राजनांदगांव, रायपुर और बिलासपुर जैसे शहरों में लगाई है।
हर जगह उन्हें दर्शकों की खूब सराहना और प्रशंसा मिली है।
🌿 पर्यावरण और परंपरा का सुंदर संगम
रोशनी कहती हैं कि पैरा आर्ट न केवल पर्यावरण के अनुकूल (Eco-friendly) है, बल्कि यह ग्रामीण परंपरा और आधुनिक रचनात्मकता का अनोखा संगम भी है। वे चाहती हैं कि इस कला को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिले ताकि छत्तीसगढ़ के गांवों की सृजनात्मकता देशभर में पहुंचे।
🔚 निष्कर्ष:
Roshni Singh Para Art Chhattisgarh के जरिए यह साबित होता है कि प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं होती। धान के पैरा जैसी साधारण चीज़ से कला की ऐसी सुंदर दुनिया रच देना, छत्तीसगढ़ की रचनात्मक आत्मा का प्रमाण है।
