गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, 15 अक्टूबर 2025: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को साकार करने में अब ग्रामीण महिलाएं भी अपनी भूमिका निभा रही हैं। दीपावली पर्व के अवसर पर छत्तीसगढ़ के पेंड्रा जनपद की महिला स्वसहायता समूहों ने मिट्टी के कलात्मक दीये, अगरबत्ती, बाती और तोरण बनाकर न सिर्फ रोजगार का अवसर बनाया है, बल्कि आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर बन रही हैं।
🌸 70 हजार मिट्टी के दीये तैयार
ग्रामीण आजीविका मिशन और जिला प्रशासन के सहयोग से पेंड्रा जनपद की पांच महिला स्वसहायता समूहों की 12 महिलाओं ने मिलकर अब तक 70 हजार मिट्टी के दीये तैयार कर लिए हैं। ये दीये स्थानीय कोटमी, नवागांव और कोड़गार हाट बाजारों में बेचे जा रहे हैं। समूह की मेहनत को देखते हुए रायपुर में आयोजित सरस मेला में भी उनके दीयों को प्रदर्शित और बेचा गया है।
अब तक महिलाओं ने 1 लाख 11 हजार 500 रुपये की बिक्री की है, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ है।
💬 “इस साल की दिवाली खास बन गई” – क्रांति पुरी
ग्राम झाबर निवासी समूह सदस्य श्रीमती क्रांति पुरी ने बताया कि इस कार्य से उन्हें करीब 9 हजार रुपये का लाभ हुआ है। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा,
“इस साल की दिवाली हमारे लिए बहुत खास है। अब हम खुद अपने हाथों से कमाई कर अपने परिवार का सहारा बन रही हैं।”
🧑🏫 ब्लॉक मिशन प्रबंधक ने दी जानकारी
ब्लॉक मिशन प्रबंधक सुश्री मंदाकिनी कोसरिया ने बताया कि इस पहल से पांच महिला स्वसहायता समूहों के परिवारों को सीधा आर्थिक लाभ मिला है। उन्होंने कहा कि महिलाएं अब आत्मनिर्भर बन रही हैं और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में भी सफल हो रही हैं।
🌱 पर्यावरण के साथ परंपरा का संगम
मिट्टी के दीयों की बिक्री से न सिर्फ महिलाओं की आय बढ़ी है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल और टिकाऊ विकल्प साबित हो रहा है। इस पहल से स्थानीय रोजगार सृजन के साथ-साथ परंपरागत कला को भी नया जीवन मिल रहा है।
❤️ मानवीय कहानी से जुड़ा संदेश
गांव की महिलाएं अब पहले से कहीं ज्यादा आत्मविश्वास महसूस कर रही हैं। वे कहती हैं कि पहले वे केवल घर की सीमाओं तक सीमित थीं, लेकिन अब उनकी मेहनत और कला राज्य स्तर पर पहचान बना रही है।
यह कहानी सिर्फ दीयों की नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता की रोशनी की है, जो अब हर घर तक पहुँच रही है।
