छत्तीसगढ़ का ‘मिनी तिब्बत’ मैनपाट: जहां बच्चों को हिंदी-इंग्लिश नहीं, तिब्बती भाषा में दी जाती है शिक्षा

Tibetan school in Mainpat Chhattisgarh: अगर भारत में कहीं ‘जीवित तिब्बत’ की झलक देखनी हो, तो वह जगह है छत्तीसगढ़ का मैनपाट। घने चीड़ के जंगलों और ठंडी हवाओं के बीच बसे इस छोटे से इलाके को लोग प्यार से ‘मिनी तिब्बत’ कहते हैं। यहां स्थित संभोटा तिब्बती स्कूल (Sambhota Tibetan School) शिक्षा का ऐसा केंद्र है, जहां बच्चे न तो हिंदी में पढ़ते हैं, न अंग्रेजी में — बल्कि अपनी मातृभाषा तिब्बती भाषा में पढ़ाई करते हैं।


🎓 संभोटा तिब्बती स्कूल: शिक्षा और संस्कृति का संगम

यह निजी विद्यालय धर्मशाला स्थित केंद्रीय तिब्बती प्रशासन द्वारा संचालित है और यहां शिक्षा पूरी तरह निःशुल्क दी जाती है। यहां की सुबहें प्रार्थना से शुरू होती हैं और फिर विज्ञान, गणित, पर्यावरण जैसे सभी विषय एनसीईआरटी (NCERT) पाठ्यक्रम के अनुसार लेकिन तिब्बती भाषा में पढ़ाए जाते हैं।

मुख्य शिक्षक दावा शेरिंग बताते हैं, “हम बच्चों को सिर्फ नौकरी पाने के लिए नहीं, बल्कि नेतृत्व करना, व्यापार करना और स्वावलंबी बनना सिखाते हैं। यहां बच्चों को शिष्टाचार और विनम्रता की शिक्षा भी दी जाती है, जो हर शिक्षित व्यक्ति के लिए जरूरी है।”


🕉️ तिब्बती भाषा की रक्षा के लिए बदला स्कूल का माध्यम

साल 1962 में जब तिब्बती लोग अपने देश से पलायन कर भारत आए, तब मैनपाट में उन्होंने नया जीवन बसाना शुरू किया। 1963 में उन्होंने अपने बच्चों के लिए एक छोटा स्कूल खोला। शुरू में पढ़ाई हिंदी और अंग्रेजी में होती थी, लेकिन 2016 में बुजुर्गों को एहसास हुआ कि बच्चे अपनी मातृभाषा तिब्बती भूल रहे हैं।

इसके बाद स्कूल ने फैसला किया कि सभी विषय अब तिब्बती में पढ़ाए जाएंगे। इस परिवर्तन के कारण कुछ स्थानीय बच्चों को कठिनाई हुई और उन्होंने स्कूल छोड़ दिया, लेकिन संस्थान ने अपनी मूल पहचान को नहीं छोड़ा


📚 आधुनिक शिक्षा साधनों से लैस स्कूल

संभोटा तिब्बती स्कूल में आज स्मार्ट क्लासरूम, प्रोजेक्टर और डिजिटल लर्निंग टूल्स का उपयोग किया जाता है। पर्यावरण अध्ययन के लिए YouTube वीडियो और Google Maps से बच्चों को वास्तविक उदाहरण दिखाए जाते हैं। बच्चे तिब्बती भाषा में वाद-विवाद और प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लेते हैं।


🏔️ मैनपाट: छत्तीसगढ़ का मिनी तिब्बत

मैनपाट में वर्तमान में करीब 3,000 तिब्बती शरणार्थी रहते हैं। यहां सात तिब्बती कैंप, सुंदर बौद्ध मंदिर, प्रार्थना ध्वज और हस्तशिल्प की दुकानें हैं। यहां का वातावरण बिल्कुल किसी हिमालयी तिब्बती बस्ती जैसा है।

स्कूल का नाम ‘संभोटा’ तिब्बती विद्वान थोनमी संभोटा के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने भारत के नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर तिब्बती लिपि का निर्माण किया था। यही लिपि आज तिब्बती साहित्य और बौद्ध ग्रंथों की नींव है।

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