Bihar voter list Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि बिहार में मतदाताओं की संख्या का राज्य की वयस्क जनसंख्या से 107% अधिक होना इस बात का प्रमाण है कि चुनाव आयोग द्वारा किए गए विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) की कार्रवाई पूरी तरह “औचित्यपूर्ण और आवश्यक” थी। अदालत ने माना कि बिहार की मतदाता सूची में वर्षों से विसंगतियां थीं, जिन्हें सुधारना जरूरी था।
न्यायमूर्ति सूर्या कांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की दो सदस्यीय पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। न्यायमूर्ति बागची ने कहा,
“जब मतदाताओं की संख्या वयस्क आबादी से 107% तक पहुंच जाए, तो यह निश्चित रूप से एक संकट है, जिसे ठीक करना जरूरी है।”
🧾 क्या था मामला?
जनसक्रिय कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने अदालत को बताया कि SIR प्रक्रिया के बाद बिहार के मतदाताओं की संख्या में 47 लाख की कमी आई है। उन्होंने कहा कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, सितंबर 2025 में बिहार की वयस्क जनसंख्या 8.22 करोड़ थी, जबकि SIR शुरू होने के समय 7.89 करोड़ वोटर सूचीबद्ध थे। लेकिन अंतिम मतदाता सूची में केवल 7.42 करोड़ मतदाता रह गए।
योगेंद्र यादव का कहना था कि,
“हम उम्मीद कर रहे थे कि वोटर लिस्ट वयस्क आबादी के करीब पहुंचेगी, लेकिन उल्टा यह 47 लाख कम हो गई। यह इतिहास में सबसे बड़ा मतदाता कटाव है।”
⚖️ अदालत की टिप्पणी
न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि 2014 और 2015 के चुनावों में मतदाताओं की संख्या वयस्क जनसंख्या से कहीं अधिक थी —
“यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि बिहार में वोटर डुप्लिकेशन या फर्जी नामों की समस्या थी। SIR के जरिए इस समस्या को ठीक करना जरूरी था।”
हालांकि यादव का तर्क था कि अब यह प्रक्रिया “रोग के खत्म होने के बाद दी गई दवा” जैसी है, जिसने वास्तविक मतदाताओं को सूची से बाहर कर दिया।
🧍♀️ वोटर सहायता के लिए सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने बताया कि जिन लोगों के नाम हटाए गए हैं, वे पांच दिनों के भीतर अपील दाखिल कर सकते हैं। इस पर अदालत ने बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (BLSA) को निर्देश दिया कि वे हर जिले में पैरा लीगल वॉलंटियर्स और फ्री लीगल एड काउंसल्स के जरिए प्रभावित लोगों की मदद करें।
अदालत ने आदेश दिया कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयंसेवक घर-घर जाकर लोगों को अपील करने का अधिकार समझाएं, अपील का मसौदा तैयार करें और निःशुल्क कानूनी सहायता दें।
💬 ADR विवाद पर असंतोष
अदालत ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा दाखिल एक हलफनामे पर नाराज़गी जताई, जिसमें दावा किया गया था कि एक व्यक्ति का नाम अंतिम सूची से हटा दिया गया। चुनाव आयोग ने बताया कि वह नाम ड्राफ्ट सूची में था ही नहीं क्योंकि उसने एन्यूमरेशन फॉर्म जमा नहीं किया था।
अदालत ने ADR के वकील प्रशांत भूषण से कहा कि ऐसे आरोपों की सच्चाई की राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा जांच कराई जाएगी।
🕊️ अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मामला अभी विचाराधीन है और 16 अक्टूबर को अगली सुनवाई होगी। अदालत ने कहा कि जब तक अपील प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक मतदाता अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए।
