नई दिल्ली, 9 अक्टूबर 2025 Bihar voter list revision controversy।
बिहार की मतदाता सूची से 81 लाख नाम गायब होने के मामले ने अब सुप्रीम कोर्ट का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। चुनाव विश्लेषक और कार्यकर्ता योगेन्द्र यादव ने गुरुवार को शीर्ष अदालत में बताया कि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के दौरान 47 लाख वयस्कों और 16 लाख महिलाओं के नाम एक झटके में सूची से हटा दिए गए।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई: साक्ष्य मांगे गए
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से अपने दावों के प्रमाण प्रस्तुत करने को कहा है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष पैरा-लीगल वॉलंटियर्स और सरकारी वकीलों को तैनात करें, ताकि जिन लोगों के नाम हटाए गए हैं, वे अपनी अपील दर्ज कर सकें।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्य बागची की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। अदालत में याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि चुनाव आयोग ने मतदाताओं को उनके नाम हटाए जाने की कोई व्यक्तिगत सूचना नहीं दी।
📊 योगेन्द्र यादव के तर्क: “यह सिर्फ सुधार नहीं, हथियार बना दिया गया है”
सुनवाई के दौरान योगेन्द्र यादव ने कहा,
“SIR ने 10 वर्षों में लैंगिक अनुपात में हुई प्रगति को मिटा दिया है। पहले महिलाओं की संख्या में 20 लाख का अंतर था, जो जनवरी तक घटकर 7 लाख रह गया था। अब यह अंतर फिर से 16 लाख तक पहुंच गया है।”
उन्होंने आगे कहा कि मतदाता सूची का सुधार आवश्यक है, लेकिन SIR ने इसे एक “हथियारबद्ध प्रक्रिया” बना दिया है।
“आयोग ने तीन ज़हरीले हथियारों का उपयोग किया — सिस्टमिक एक्सक्लूजन (प्रणालीगत बहिष्कार), स्ट्रक्चरल एक्सक्लूजन (संरचनात्मक बहिष्कार) और टार्गेटेड एक्सक्लूजन (लक्षित बहिष्कार)।”
📉 81 लाख वयस्कों का अंतर: आंकड़े चिंताजनक
योगेन्द्र यादव ने बताया कि बिहार की वयस्क जनसंख्या 8.22 करोड़ है, जबकि मतदाता सूची में केवल 7.42 करोड़ मतदाता दर्ज हैं।
“इसका मतलब है कि करीब 81 लाख वयस्क नागरिकों को वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया गया है, जो कुल आबादी का लगभग 10 प्रतिशत है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने यह भी दिखाया कि सूची में कई जगह नाम तमिल और कन्नड़ लिपि में लिखे गए हैं, कुछ स्थानों पर पति/पत्नी के नाम और पते खाली छोड़े गए हैं।

⚔️ चुनाव आयोग की दलील: “याचिकाकर्ताओं के दावे झूठे”
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कोर्ट में कहा कि याचिकाकर्ताओं के हलफनामों में किए गए दावे झूठे हैं।
“जिस व्यक्ति का नाम हटाया गया बताया जा रहा है, उसने नामांकन फॉर्म ही नहीं भरा था। यह गलत दावे हैं,” उन्होंने कहा।
आयोग ने यह भी कहा कि अब तक किसी व्यक्ति ने औपचारिक रूप से अपने नाम हटाए जाने की शिकायत नहीं की है, इसलिए यह कहना गलत होगा कि बड़े पैमाने पर मतदाता वंचित किए गए हैं।
📢 पृष्ठभूमि: SIR प्रक्रिया पर विवाद क्यों
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) का उद्देश्य मतदाता सूचियों को अद्यतन करना था। लेकिन विपक्षी दलों और नागरिक संगठनों ने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया में दलितों, प्रवासी मजदूरों और मुस्लिम समुदाय के लोगों के नाम बड़ी संख्या में हटाए गए हैं।
योगेन्द्र यादव ने पहले भी चेताया था कि यह प्रवृत्ति “लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को कमजोर कर सकती है”।
