तिरुवनंतपुरम, 7 अक्टूबर 2025 Sabarimala temple gold theft
केरल के प्रसिद्ध सबरीमला अयप्पा मंदिर में सोने की परत चढ़ाने के कार्य से जुड़ा सोना घोटाला अब और गहराता जा रहा है।
नए खुलासे में सामने आया है कि मंदिर के प्रायोजक उन्नीकृष्णन पोटी ने 2019 में मंदिर के कार्य पूरा करने के बाद बचे हुए सोने का उपयोग एक लड़की की शादी के लिए करने की अनुमति मांगी थी।
2019 में लिखे गए एक पत्र में उन्नीकृष्णन पोटी ने त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड (TDB) को लिखा था —
“मैंने सबरीमला मंदिर के मुख्य द्वार और द्वारपाल मूर्तियों पर सोने की परत चढ़ाने का कार्य पूरा कर लिया है। मेरे पास कुछ सोना शेष बचा है, जिसे मैं एक जरूरतमंद लड़की की शादी में उपयोग करना चाहता हूँ, आपकी सहमति चाहूंगा।”
देवस्वम सचिव ने इस पत्र के आधार पर 17 दिसंबर 2019 को इस बचे हुए सोने के उपयोग पर स्पष्टता मांगी थी।
लेकिन इसके कुछ समय बाद ही मंदिर की संपत्ति में सोने के वजन में कमी का बड़ा मामला सामने आया।
पोटी की कंपनी “स्मार्ट क्रिएशंस” को मंदिर की मूर्तियों और कीमती वस्तुओं पर सोने की परत चढ़ाने का जिम्मा दिया गया था।
कुल 42.8 किलोग्राम सोना उन्हें सौंपा गया था, लेकिन जब सोने से मढ़े तांबे के प्लेट वापस मंदिर में लाए गए, तो उनका वजन घटकर 38.258 किलोग्राम रह गया। यानी लगभग 4.5 किलोग्राम सोना रहस्यमय तरीके से गायब हो गया।

इसके बावजूद त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड ने इस वर्ष फिर से पोटी को एक और सोना चढ़ाने का प्रोजेक्ट सौंप दिया।
लेकिन मामला तब उछला जब केरल हाईकोर्ट ने देवस्वम बोर्ड को फटकार लगाते हुए कहा कि यह मंदिर की पवित्रता और श्रद्धालुओं के विश्वास के साथ “गंभीर विश्वासघात” है।
हाईकोर्ट ने तुरंत प्रभाव से मंदिर से बाहर रखे गए सोने के पैनल वापस लाने के आदेश दिए और एक विशेष जांच टीम (SIT) गठित करने को कहा।
इस SIT की अगुवाई पूर्व पुलिस अधीक्षक एस. ससिधरन करेंगे, जबकि जांच की निगरानी क्राइम ब्रांच के एडीजीपी एच. वेंकटेश करेंगे।
टीम में तीन निरीक्षक और साइबर विशेषज्ञ भी शामिल किए गए हैं।
इस विवाद पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने राज्य सरकार से जवाबदेही की मांग की है।
उन्होंने कहा —
“केरल के लोग समझते हैं कि इस मामले में कुछ गंभीर गड़बड़ है। कई किलो सोना गायब होना कोई मामूली आरोप नहीं है। यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि इस पर पारदर्शी जांच हो।”

अब यह मामला सिर्फ चोरी या गड़बड़ी तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि श्रद्धा, पारदर्शिता और मंदिर प्रबंधन की जवाबदेही का प्रतीक बन गया है।
