जांजगीर-चांपा के किसान दुलार सिंह बने आत्मनिर्भरता की मिसाल, मनरेगा से बनी डबरी ने बदल दी किस्मत

रायपुर, 7 अक्टूबर 2025। MNREGA water conservation success story:
जांजगीर-चांपा जिले की ग्राम पंचायत जाटा के बहेराडीह गांव के किसान दुलार सिंह आज अपने गाँव में आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुके हैं। कभी सिंचाई के पानी के लिए संघर्ष करने वाले दुलार सिंह ने अब अपने खेत में मनरेगा के तहत बनी ‘डबरी’ (छोटी जलसंग्रह संरचना) से खेती, मछली पालन और पशुपालन—तीनों को आगे बढ़ाकर अपनी आमदनी में जबरदस्त वृद्धि की है।


🌾 पानी से उपजा समृद्धि का रास्ता

पहले दुलार सिंह को खेतों की सिंचाई में कठिनाई होती थी। धान की सीमित फसल मिलती थी, और पशुपालन भी मुश्किल था। लेकिन महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत ग्राम पंचायत जाटा में उनके खेत पर 2.14 लाख रुपये की लागत से डबरी निर्माण स्वीकृत हुआ।

इस काम से 380 मानव दिवस का सृजन हुआ और 37 श्रमिक परिवारों को ₹92,577 की मजदूरी मिली। जून 2024 में पूरा हुआ यह कार्य न केवल जल संरक्षण का उदाहरण बना बल्कि ग्रामीण रोजगार का भी साधन बना।


🐟 खेती के साथ मत्स्य पालन और सब्जी उत्पादन

अब इस डबरी में वर्षा जल का संचयन होता है, जिससे सालभर सिंचाई सुचारू रूप से होती है। दुलार सिंह ने इसमें रोहू और पंगास मछली के बीज डाले हैं। वे बताते हैं,

“अब मेरी धान की फसल तो अच्छी होती ही है, साथ ही मेढ़ पर सब्जियाँ, हल्दी और तिल भी उगा रहा हूँ। अगले महीने मछलियों की बिक्री से भी आमदनी होगी।”

उनके अनुसार, पशुपालन और मत्स्य पालन से घर की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।


🌱 गांव के किसानों के लिए बनी प्रेरणा

ग्राम पंचायत सरपंच और रोजगार सहायक के अनुसार, इस डबरी निर्माण ने अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है। कई ग्रामीण अब अपनी निजी भूमि पर जल संरक्षण संरचनाएँ बनवाने के लिए आगे आ रहे हैं।

मनरेगा के इस कार्य ने रोजगार के साथ-साथ स्थायी संपत्ति निर्माण का उदाहरण पेश किया है।


💬 मनरेगा: जल संरक्षण से आत्मनिर्भरता तक

दुलार सिंह की कहानी बताती है कि अगर जल का प्रबंधन सही हो, तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था स्वतः सशक्त हो सकती है। मनरेगा से बना यह जलाशय न केवल एक किसान की जिंदगी बदल गया, बल्कि गांव के विकास की नई दिशा भी तय कर गया।

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