रायपुर, 1 अक्टूबर।
भारत में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में कई पत्रकारों पर हमले, धमकियां और यहां तक कि हत्या जैसी घटनाएं सामने आई हैं। ये घटनाएं बताती हैं कि सच्चाई लिखने और दिखाने की कीमत पत्रकारों को आज भी भारी चुकानी पड़ रही है।
मुकेश चंद्राकर की हत्या का चार्जशीट

18 मार्च 2025 को छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में पत्रकार मुकेश चंद्राकर हत्या मामले में पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की। इस चार्जशीट में निर्माण ठेकेदार सुरेश चंद्राकर, ऋतेश चंद्राकर, दिनेश चंद्राकर और महेंद्र रामटेके को आरोपी बनाया गया। मुकेश चंद्राकर की हत्या ने पूरे राज्य में सनसनी फैला दी थी, क्योंकि वे अक्सर निर्माण कार्यों और भ्रष्टाचार पर रिपोर्टिंग करते थे।
महिला पत्रकार स्नेहा बर्वे को बार-बार धमकियां

मुंबई और पुणे क्षेत्र में पत्रकारिता करने वाली स्नेहा बर्वे हाल ही में लगातार हमलों और धमकियों का सामना कर रही हैं। कुछ दिन पहले उन्हें मंचर (पुणे) में अवैध निर्माण पर रिपोर्टिंग करते समय हमला झेलना पड़ा। अब उन्हें ताज़ा मौत की धमकियां मिल रही हैं। महिला पत्रकार पर हुए हमले ने महिला अधिकार संगठनों और प्रेस स्वतंत्रता समर्थकों को गहरी चिंता में डाल दिया है। महाराष्ट्र सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की जा रही है।
उत्तरकाशी में राजीव प्रताप सिंह की रहस्यमयी मौत

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में 36 वर्षीय पत्रकार राजीव प्रताप सिंह की लाश 28 सितंबर को जोशियाड़ा बैराज से बरामद हुई। वह 10 दिन से लापता थे। राजीव अपने यूट्यूब चैनल Delhi Uttarakhand Live के माध्यम से सरकारी लापरवाहियों और भ्रष्टाचार को उजागर करते थे। 16 सितंबर को उन्होंने जिला अस्पताल की खस्ताहाल स्थिति पर रिपोर्ट की थी, जिसके बाद उन्हें लगातार धमकियां मिल रही थीं।
उनकी पत्नी मुस्कान ने कहा, “वह सच दिखा रहे थे और इसी वजह से दबाव में थे। हमें उनकी मौत में साजिश की आशंका है।”
पत्रकारों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल
इन घटनाओं ने पत्रकारों और समाज के सामने एक बड़ा प्रश्न खड़ा कर दिया है—क्या भारत में सच लिखना और सत्ता से सवाल करना अब खतरे से खाली नहीं रहा?
पत्रकार संगठन लगातार मांग कर रहे हैं कि सरकार पत्रकार सुरक्षा कानून को सख्ती से लागू करे और दोषियों को कठोर सज़ा मिले।
