रायपुर, 27 सितंबर 2025।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को छत्तीसगढ़ के पूर्व न्यायिक अधिकारी प्रभाकर ग्वाल की बर्खास्तगी को सही ठहराते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी। ग्वाल पर आरोप था कि उन्होंने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश, वरिष्ठ न्यायाधीशों, पुलिस अधिकारियों और अन्य न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ झूठी और बेबुनियाद शिकायतें की थीं।
✦ आरोपों की शुरुआत और घटनाक्रम
प्रभाकर ग्वाल ने 2005 में सिविल जज क्लास-II के रूप में सेवा शुरू की थी। 2012 में उनका पदोन्नयन सिविल जज क्लास-I और 2015 में रायपुर के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM) के पद पर हुआ।
इसी दौरान उन्होंने बिना हाईकोर्ट की अनुमति लिए एक विधायक और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई, जिसके चलते उन्हें बार-बार शो-कॉज नोटिस मिले।
2015 में उनकी पत्नी ने भी तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश नवीन सिन्हा, न्यायमूर्ति पी. दिवाकर, कुछ पुलिस अधिकारियों और अन्य न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ आरोप और आपराधिक प्रकरण दर्ज कराया। इन घटनाओं ने पूरे मामले को और गंभीर बना दिया।
✦ हाईकोर्ट और राज्य सरकार का फैसला
फरवरी 2016 में ग्वाल पर एक छोटी सजा (एक वेतन वृद्धि रोकी गई) दी गई, लेकिन बार-बार और गंभीर आरोपों को देखते हुए मार्च 2016 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की फुल कोर्ट ने माना कि विभागीय जांच संभव नहीं है।
इसलिए, संविधान के अनुच्छेद 311(2)(b) के तहत उनकी सेवा समाप्त करने की अनुशंसा की गई। इसके बाद अप्रैल 2016 में राज्य सरकार ने उन्हें बर्खास्त कर दिया।
✦ कानूनी लड़ाई और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
ग्वाल ने पहले हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसे 2020 में खारिज कर दिया गया। बाद में डिवीजन बेंच ने भी कहा कि यह मामला किसी एक गलती का नहीं बल्कि बार-बार की गईं झूठी और आपत्तिजनक शिकायतों का है।
आखिरकार, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा। न्यायमूर्ति विक्रांत नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने भी ग्वाल की अपील खारिज कर दी और कड़े शब्दों में कहा—
“यह किस तरह के आरोप हैं? क्या आप चाहते हैं कि इन्हें खुले में पढ़ा जाए? मुख्य न्यायाधीश के घर पर छापे की मांग—यह न्यायिक पद के लिए अयोग्य आचरण है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रभाकर ग्वाल का व्यवहार यह दर्शाता है कि वे किसी भी सरकारी पद पर बने रहने योग्य नहीं हैं, न्यायिक सेवा की तो बात ही छोड़ दें।
✦ मानवीय पहलू
ग्वाल के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस ने सुप्रीम कोर्ट से मामले की जांच कराने की अपील की थी, लेकिन अदालत ने कहा कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। अदालत के मुताबिक, यह मामला पूरी तरह से ग्वाल के अनुचित आचरण और बेबुनियाद आरोपों से जुड़ा है।
