नई दिल्ली, 26 सितम्बर 2025।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा 1 अक्टूबर 2025 से आयातित ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर 100% टैरिफ लगाने की घोषणा ने पूरी दुनिया की फार्मा कंपनियों में हलचल मचा दी है। ट्रम्प ने स्पष्ट किया है कि केवल वे कंपनियां इस टैरिफ से बच सकेंगी, जो अमेरिका में फार्मा मैन्युफैक्चरिंग प्लांट का निर्माण कर रही होंगी।
भारत को क्यों कम असर होगा?
भारत अमेरिकी दवा बाजार का एक बड़ा आपूर्तिकर्ता है, लेकिन इसकी ताकत मुख्य रूप से जेनेरिक दवाओं पर आधारित है।
- 2025 वित्तीय वर्ष में भारत का अमेरिका को फार्मा निर्यात $9.8 अरब डॉलर रहा, जो भारत के कुल निर्यात का 39.8% है।
- भारत से अमेरिका जाने वाली दवाओं में जेनेरिक फॉर्मूलेशन जैसे टैबलेट, कैप्सूल, इंजेक्शन, एंटीबायोटिक्स (अमोक्सिसिलिन, एजीथ्रोमाइसिन, सिप्रोफ्लॉक्सासिन), विटामिन सप्लीमेंट्स, हार्मोन ट्रीटमेंट, डायबिटीज और हृदय रोग की दवाएं प्रमुख हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की लो-कॉस्ट जेनेरिक दवाओं पर यह टैरिफ सीधे लागू नहीं होगा। हालांकि, एक बड़ा प्रश्न ब्रांडेड जेनेरिक को लेकर है। उदाहरण के लिए — पैरासिटामोल को “क्रोसिन” नाम से ब्रांडेड रूप में बेचा जाता है। अगर अमेरिका इन्हें “ब्रांडेड” की श्रेणी में रखता है, तो भारत की कुछ जेनेरिक दवाएं भी टैरिफ की जद में आ सकती हैं।
भारत की शीर्ष फार्मा कंपनियां
अमेरिका को दवा निर्यात करने वाली भारतीय कंपनियों में 70% हिस्सेदारी चुनिंदा कंपनियों की है। इनमें शामिल हैं:
ज़ाइडस लाइफसाइंसेज़, डॉ. रेड्डीज़ लेबोरेट्रीज़, लुपिन, ऑरोबिंदो फार्मा, हेटेरो लैब्स, सन फार्मा, सिप्ला, ग्लेनमार्क, एलेम्बिक, अल्केम, ग्रैन्यूल्स इंडिया, मायलन, अमनील फार्मा और यूनिकेम लेबोरेट्रीज़।
यूरोप को सबसे बड़ा झटका
अमेरिका के 2024 के आंकड़ों के अनुसार उसने कुल $212.82 अरब डॉलर की दवाओं का आयात किया। इसमें:
- आयरलैंड – $50.35 अरब (23.66%)
- स्विट्ज़रलैंड – $19.03 अरब (8.94%)
- जर्मनी – $17.24 अरब (8.10%)
- भारत – $12.73 अरब (5.98%)
यूरोप के ये देश मुख्य रूप से ब्रांडेड और पेटेंटेड महंगी दवाओं का निर्यात करते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रम्प के इस कदम से इन्हें सबसे अधिक नुकसान होगा।
वैश्विक प्रतिक्रिया
- यूरोपीय संघ ने आपत्ति जताते हुए कहा कि जुलाई में अमेरिका के साथ हुआ समझौता उन्हें 15% से अधिक टैरिफ से सुरक्षा देता है।
- यूरोपीय दवा उद्योग संघ ने चेताया कि “टैरिफ से लागत बढ़ेगी, आपूर्ति श्रृंखला टूटेगी और मरीज़ों तक दवाएं पहुंचने में बाधा होगी।”
- ऑस्ट्रेलिया, जिसने 2024 में अमेरिका को $1.35 अरब की दवाएं बेची थीं, ने भी इस निर्णय का विरोध किया। ऑस्ट्रेलियाई स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि यह अमेरिकी उपभोक्ताओं के हित में नहीं है।
भारतीय सरकार की प्रतिक्रिया
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा कि सरकार इस निर्णय का गहन अध्ययन कर रही है और विभिन्न मंत्रालय मिलकर इसके संभावित प्रभावों का आकलन कर रहे हैं।
नतीजा
विशेषज्ञ अजय श्रीवास्तव (संस्थापक, GTRI) का कहना है कि भारत की जेनेरिक आधारित दवा आपूर्ति फिलहाल सुरक्षित है, लेकिन यूरोप के देशों — विशेषकर आयरलैंड, स्विट्ज़रलैंड और जर्मनी — को सबसे बड़ा झटका लगेगा। दुनिया की फार्मा आपूर्ति श्रृंखला पर इसका दीर्घकालीन असर दिख सकता है।
