H-1B वीज़ा फीस 100,000 डॉलर: भारतीय आईटी पेशेवरों का सपना टूटा, सरकार बोली- होगा मानवीय असर

नई दिल्ली। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 21 सितंबर को H-1B वीज़ा पर 100,000 डॉलर की नई फीस लगाने का ऐलान किया है। अब तक इस वीज़ा की फीस केवल 2,000 से 5,000 डॉलर के बीच होती थी। अचानक हुई इस भारी बढ़ोतरी से भारतीय आईटी पेशेवरों और उनके परिवारों में गहरी चिंता है।

भारत सरकार ने इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इससे परिवारों में बिखराव और मानवीय संकट खड़ा हो सकता है। विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, “सरकार ने अमेरिका की एच-1बी वीज़ा पॉलिसी पर प्रस्तावित बदलावों की रिपोर्ट देखी है। इसके पूरे प्रभाव का अध्ययन किया जा रहा है। भारतीय उद्योग जगत भी इस पर प्रारंभिक विश्लेषण साझा कर चुका है।”

एच-1बी वीज़ा लंबे समय से भारतीय युवाओं के लिए “अमेरिकन ड्रीम” का प्रतीक रहा है। अमेरिकी टेक उद्योग को आगे बढ़ाने में भारतीय पेशेवरों की सबसे बड़ी भूमिका मानी जाती है। आंकड़े बताते हैं कि सभी एच-1बी स्वीकृत आवेदनों में 71 प्रतिशत भारतीय होते हैं

मानवीय पहलू और भारतीय सपनों की कहानी

दिल्ली के रहने वाले सौरभ मिश्रा, जिनकी पत्नी और दो बच्चे अमेरिका में रहते हैं, कहते हैं—“यह फीस हम जैसे मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए असंभव है। मेरे बच्चों की पढ़ाई और मेरा करियर दोनों अधर में लटक सकते हैं।”

ऐसी कहानियां हजारों भारतीय परिवारों की हैं, जिनका भविष्य अब अनिश्चित हो गया है।

अमेरिकी दिग्गज भी रहे हैं एच-1बी से लाभान्वित

  • एलन मस्क – पहले J-1 वीज़ा पर अमेरिका आए और बाद में एच-1बी पर स्थायी करियर बनाया। खुद मस्क ने कहा था, “मैं और सैकड़ों लोग जिन्होंने स्पेसएक्स और टेस्ला बनाई, हम सब अमेरिका में एच-1बी वीज़ा की वजह से हैं।”
  • सत्य नडेला – माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ, जिन्होंने 1990 के दशक में एच-1बी वीज़ा पर अपना करियर शुरू किया।
  • सुंदर पिचाई – गूगल और अल्फाबेट के सीईओ, जो छात्र वीज़ा से अमेरिका पहुंचे और फिर एच-1बी पर स्थायी करियर बनाया। उन्होंने कहा था, “प्रवासन ने अमेरिका को विश्व नेता बनाया है और गूगल को आज जो बनाया है।”

अमेरिका का पक्ष

अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लूटनिक का कहना है कि “सभी बड़ी कंपनियां इस फैसले के साथ हैं।” उन्होंने यह भी माना कि अब शायद 85,000 की वार्षिक सीमा पूरी न हो पाए क्योंकि “अब यह आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं रहा।”

भारत की उम्मीद

भारत ने उम्मीद जताई है कि अमेरिका इस फैसले की समीक्षा करेगा। विदेश मंत्रालय का कहना है कि यह केवल भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका की तकनीकी प्रतिस्पर्धा और नवाचार क्षमता को भी प्रभावित करेगा।

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